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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दुक्खाऽऽउए उदिण्णे, आहारे, कम्म-वण्ण-लेसा य।।
समवेदण समकिरिया समाउए चेव बोद्धव्वा ॥१॥ [१२ प्र.] भगवन्! क्या लेश्या वाले समस्त नैरयिक समान आहार वाले होते हैं ?
[१२ उ.] हे गौतम! औधिक (सामान्य), सलेश्य एवं शुक्ललेश्यावाले इन तीनों का एक गमपाठ कहना चाहिए। कृष्णलेश्या और नीललेश्या वालों का एक समान पाठ कहना चाहिए, किन्तु उनकी वेदना में इस प्रकार भेद है-मायी-मिथ्यादष्टि-उपपन्नक और अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक कहने चाहिए। तथा कृष्णलेश्या और नीललेश्या (के सन्दर्भ) में मनुष्यों के सरागसंयत, वीतरागसंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत भेद नहीं कहना चाहिए। तथा कापोतलेश्या में भी यही पाठ कहना चाहिए। भेद यह है कि कापोतलेश्या वाले नैरयिकों को औधिक दण्डक के समान कहना चाहिए। तेजोलेश्या और पद्मलेश्या वालों को भी औधिक दण्डक के समान कहना चाहिए। विशेषता यह है कि इन मनुष्यों में सराग और वीतराग का भेद नहीं कहना चाहिए; क्योंकि तेजोलेश्या और पद्मलेश्या वाले मनुष्य सराग ही होते हैं।
गाथार्थ-दुःख (कर्म) और आयुष्य उदीर्ण हो तो वेदते हैं। आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और आयुष्य, इन सबकी समानता के सम्बन्ध में पहले कहे अनुसार ही समझना चाहिए।
१३. कति णं भंते! लेसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ। तं जहा-लेसाणं बीओ उद्देसओ भाणियव्वो जाव इड्डी।
[१३ प्र.] भगवन्! लेश्याएँ कितनी कही गई हैं ?
[१३ उ.] गौतम! लेश्याएँ छह कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के लेश्यापद (१७वाँ पद) का द्वितीय उद्देशक कहना चाहिए। वह ऋद्धि की वक्तव्यता तक कहना चाहिए।
विवेचन-नारक आदि चौबीस दण्डकों के सम्बन्ध में समाहारादि दश द्वार-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-पाँचवें सूत्र से ११वें सूत्र तक नारकी से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकों के सम्बन्ध में निम्नोक्त दस द्वार-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर अंकित किये गए हैं-(१) सम-आहार, (२) सम-शरीर, (३) सम-उच्छ्वास-निःश्वास, (४) समकर्म, (५) समवर्ण, (६) समलेश्या, (७) समवेदना, (८) समक्रिया, (९) समायुष्क, तथा (१०) समोपपन्नक।
छोटा-बड़ा शरीर आपेक्षिक-प्रस्तुत में नैरयिकों का छोटा और बड़ा शरीर अपेक्षा से है। छोटे की अपेक्षा कोइ वस्तु बड़ी कहलाती है, और बड़ी की अपेक्षा छोटी कहलाती है। नारकों का छोटे से छोटा शरीर अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना है और बड़े से बड़ा ५०० धनुष के बराबर है। ये दोनों प्रकार के शरीर भवधारणीय शरीर की अपेक्षा से कहे गए हैं। उत्तरवैक्रिय शरीर छोटे से छोटा अंगुल के संख्यातवें भाग तक और बड़ा से बड़ा शरीर एक हजार धनुष का हो सकता है।
प्रथम प्रश्न आहार का, किन्तु उत्तर शरीर का इसलिए कहा गया है कि शरीर का परिमाण