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प्रथम शतक : उद्देशक-२]
[४७ [५] नेरइया णं भंते! सव्वे समवेदणा? गोयमा! नो इणढे समढे। से केणतुणं?
गोयमा! नेरइया दुविहा पण्णत्ता।तं जहा-सण्णिभूया य असण्णिभूया य। तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते णं महावेयणतरागा, तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अप्पवेयणतरागा। से तेणटेणं गोयमा! ०॥५॥
[५-५ प्र.] भगवन् ! क्या सब नारक समान वेदना वाले हैं ? [५-५ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-संज्ञिभूत और असंज्ञिभूत। इनमें जो संज्ञिभूत हैं, वे महावेदना वाले हैं और इनमें जो असंज्ञिभूत हैं, वे (अपेक्षाकृत) अल्पवेदना वाले हैं। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सब नारक समान वेदना वाले नहीं है।
[६] नेरइया णं भंते! सव्वे समकिरिया ? गोयमा! नो इणढें समढे। से केणद्वेणं?
गोयमा! नेरइया तिविहा पण्णत्ता। तं जहा-सम्मट्ठिी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्ठी। तत्थ णं जे ते सम्मादिट्ठी तेसि णं चत्तारि किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया १, पारिग्गहिया २, मायावत्तिया ३, अपच्चक्खाणकिरिया ४। तत्थ णं जे ते मिच्छादिट्ठी तेसि णं पंच किरियाओ कज्जंति, तंजहा-आरंभिया जाव मिच्छादंसणवत्तिया। एवं सम्मामिच्छादिट्ठीणं पि। से तेणठेणं गोयमा! ०॥६॥
[५-६ प्र.] हे भगवन् ! क्या सभी नैरयिक समानक्रिया वाले हैं ? [५-६ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! नारक तीन प्रकार के कहे गए हैं यथा-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि)। इनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, उनके चार क्रियाएँ कही गई हैं, जैसे कि-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यानक्रिया। इनमें जो मिथ्यादृष्टि हैं, उनमें पांच क्रियाएँ कही गई हैं, वे इस प्रकार- आरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्यया तक। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि के भी पांचों क्रियाएँ समझनी चाहिए। इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सब नारक समानक्रिया वाले नहीं हैं।
[७] नेरइया णं भंते! सव्वे समाउया ? सव्वे समोववन्नगा? गोयमा! णो इणढे समढे। से केणटेणं? गोयमा! नेरइया चउव्विहा पण्णत्ता तं जहा–अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा १,