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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा! नेरइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-पुव्वोववन्नगा य पच्छोववनगा य। तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा। तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा। से तेणटेणं गोयमा! ० ॥२॥
[५-२ प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समान कर्म वाले हैं ? [५-२ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ?
[उ.] गौतम! नारकी जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; वह इस प्रकार हैं- पूर्वोपपन्नक (पहले उत्पन्न हुए) और पश्चादुपपन्नक (पीछे उत्पन्न हुए)। इनमें से जो पूर्वोपपन्नक हैं वे अल्पकर्म वाले हैं
और जो उनमें पश्चादुपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं, इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान कर्मवाले नहीं हैं।
[३] नेरइया णं भंते! सव्वे समवण्णा ? गोयमा! नो इणद्वे समढे।केणटेणं तह चेव ? गोयमा! जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा तहेव से तेणटेणं ॥३॥ [५-३ प्र.] भगवन्! क्या सभी नारक समवर्ण वाले हैं ? [५-३ उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! पूर्वोक्त कथनवत् नारक दो प्रकार के हैं - पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे विशुद्ध वर्ण वाले हैं, तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध वर्ण वाले हैं, इसीलिए हे गौतम! ऐसा कहा जाता है।।
[४] नेरइया णं भंते! सव्वे समलेसा? गोयमा! नो इणटे समढे। से केणटेणं जाव नो सव्वे समलेसा?
गोयमा! नेरइया दुविहा पण्णत्ता।तं जहा-पुव्वोववनगा य पच्छोववनगा य।तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं विसुद्धलेसतरागा, तत्थ णंजे ते पच्छोववन्नगा ते णं अविसुद्धलेसतरागा। से तेणद्वेणं० ॥४॥
[५-४ प्र.] भगवन्! क्या सब नैरयिक समानलेश्या वाले हैं ? [५-४ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [प्र.] भगवन्! किस कारण से कहा जाता है कि सभी नैरयिक समान लेश्या वाले नहीं हैं ?
[उ.] गौतम! नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि-पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। इनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे विशुद्ध लेश्या वाले और जो इनमें पश्चादुपपन्नक हैं, वे अविशुद्ध लेश्या वाले हैं, इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान लेश्या वाले नहीं हैं।