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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-२] [४५ कदाचित् वर्तमान में नहीं दिखाई देता, उसका कारण यह है कि वर्तमान में वे कर्म उदय में नहीं आए हुए (अनुदय-अवस्था में) हैं, जब वे उदयावस्था में आते हैं, तभी फल देते हैं। परन्तु स्वकृतकर्म का फल तो चौबीस ही दण्डक के जीवों को अनुभाग से अथवा प्रदेशोदय से भोगना पड़ता है। चौबीस दंडक में समानत्व चर्चा [ नैरयिक विषय] ५.[१] नेरइया णं भंते ? सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा, सव्वे समुस्सास-नीसासा? गोयमा ! नो इणठे समठे।सेकेणठेणं भंते! एवं वुच्चति-नेरइया नो सव्वे समाहारा, नो सव्वे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सास-निस्सासा ? गोयमा! नेरइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-महासरीरा य अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते महासरीराते बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति,अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं ऊससंति, अभिक्खणं निस्ससंति। तत्थ णंजे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले नीससंति, आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उस्ससंति, आहच्च नीससंति।से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चइनेरइया नो सव्वे समाहारा जाव नो सव्वे समुस्सास-निस्सासा॥ [५-१. प्र.] भगवन् ! क्या सभी नारक समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास-नि:श्वास वाले होते हैं ? [५-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात).समर्थ (शक्य-सम्भव) नहीं है। [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि सभी नारक जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्वास-नि:श्वास वाले नहीं हैं ? _ [उ.] गौतम! नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; जैसे कि-महाशरीरी (महाकाय) और अल्पशरीरी (छोटे शरीर वाले)। इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत (आहृत) पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुत पुद्गलों को उच्छ्वास रूप में ग्रहण करते हैं और बहुत पुद्गलों को निःश्वासरूप से छोड़ते हैं तथा वे बार-बार आहार लेते हैं, बार-बार उसे परिणमाते हैं, तथा बार-बार उच्छवास-निःश्वास लेते हैं। तथा जो छोटे शरीर वाले नारक हैं, वे थोड़े पुद्गलों का आहार करते हैं, थोड़े-से (आहृत) पुद्गलों का परिणमन करते हैं, और थोड़े पुद्गलों को उच्छ्वास रूप से ग्रहण करते हैं तथा थोड़े-से पुद्गलों को निःश्वास-रूप से छोड़ते हैं। वे कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् उसे परिणमाते हैं और कदाचित् उच्छ्वास तथा निःश्वास लेते हैं। इसलिए हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले और समान उच्छ्वास-नि:श्वास वाले नहीं हैं। [२] नेरइया णं भंते! सव्वे समकम्मा ? गोयमा! णो इणढे समठे। से केणढेणं?
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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