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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
थेगया समाया विसमोववन्नगा २, अत्थेगइया विसमाउया समोववन्नगा ३, अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा ४ । से तेणद्वेणं गोयमा ! ० ॥ ७ ॥
[५-७ प्र.] भगवन्! क्या सभी नारक समान आयुष्य वाले हैं और समोपपन्नक - एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं ?
[५-७ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
[प्र.] भगवन्! ऐसा किस कारण से कहते हैं ?
[उ.] गौतम ! नारक जीव चार प्रकार के कहे गए हैं। वह इस प्रकार - (१) समायुष्क समोपपन्नक (समान आयु वाले और . क साथ उत्पन्न हुए), (२) समायुष्क विषमोपपन्नक (समान आयु वाले और पहले पीछे उत्पन्न हुए), (३) विषमायुष्क समोपपन्नक ( विषम आयु वाले, किन्तु एक साथ उत्पन्न हुए), और (४) विषमायुष्क - विषमोपपन्नक ( विषम आयु वाले और पहले-पीछे उत्पन्न हुए)। इसी कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि सभी नारक समान आयु वाले और एक साथ उत्पन्न होने वाले नहीं हैं।
असुरकुमारादि समानत्व चर्चा
६[ १ ] असुरकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा ? सव्वे समसरीरा ? जहा नेरइया तहा भाणियव्वा । नवरं कम्म वण्ण-लेसाओ परित्थल्लेयव्वाओ - पुव्वोववन्नगा महाकम्मतरागा, अविसुद्धवण्णतरागा, अविसुद्धलेसतरागा । पच्छोववन्नगा पसत्था । सेसं तहेव ।
[६-१ प्र.] भगवन्! क्या सब असुरकुमार समान आहार वाले और समान शरीर वाले हैं ? (इत्यादि सब प्रश्न पूर्ववत् करने चाहिए ।)
[६-१ उ.] गौतम! असुरकुमारों के सम्बन्ध में सब वर्णन नैरयिकों के समान कहना चाहिए। विशेषता यह है कि - असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों से विपरीत कहना चाहिए; अर्थात् – पूर्वोपपन्नक (पूर्वोत्पन्न) असुरकुमार महाकर्म वाले, अविशुद्ध वर्ण वाले और अशुद्ध लेश्या वाले हैं, जबकि पश्चादुपपन्नक (बाद में उत्पन्न होने वाले) प्रशस्त हैं। शेष सब पहले के समान जानना चाहिए ।
[ २ ] एवं जाव थणियकुमारा ।
[६-३] इसी प्रकार (नागकुमारों से लेकर) यावत् स्तनितकुमारों (तक) समझना चाहिए। पृथ्वीकायादि समानत्व चर्चा
७. [१] पुढविक्काइयाणं आहार- कम्म-वण्ण- लेसा जहा नेरइयाणं ।
[७-१] पृथ्वीकायिक जीवों का आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के समान समझना
चाहिए ।
[२] पुढविक्काइया णं भंते सव्वे समवेदणा ?