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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से नैरयिकों के (स्थान में) उद्योत नहीं होता, अन्धकार होता
- [४-२ उ.] गौतम! नैरयिक जीवों के अशुभ पुद्गल और अशुभ पुद्गल-परिणाम होते हैं इस कारण से वहाँ उद्योत नहीं, किन्तु अन्धकार होता है।
५.[१] असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोते, अंधकारे ? गोयमा! असुरकुमाराणं उन्जोते, नो अंधकारे। [५-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के क्या उद्योत होता है, अथवा अन्धकार होता है ? [५-१ उ.] गौतम! असुरकुमारों के उद्योत होता है, अन्धकार नहीं होता। [२] से केणढेणं०? गोतमा! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला,सुभे पोग्गलपरिणामे,से तेणठेणं एवं वुच्चतिः।
[५-२ प्र.] भगवन्! यह किस कारण से कहा जाता है (कि असुरकुमारों के उद्योत होता है, अन्धकार नहीं ?)
[५-२ उ.] गौतम! असुरकुमारों के शुभ पुद्गल या शुभ पुद्गल परिणाम होते हैं; इस कारण से कहा जाता है कि उनके उद्योत होता है, अन्धकार नहीं होता।
[३] एवं जाव' थणियाणं। [५-३] इसी प्रकार (नागकुमार देवों से लेकर) स्तनितकुमार देवों तक के लिए कहना चाहिए। ६. पुढविकाइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया।
[६] जिस प्रकार नैरयिक जीवों के (उद्योत-अन्धकार के) विषय में कथन किया, उसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों से लेकर त्रीन्द्रिय जीवों, तक के विषय में कहना चाहिए।
७.[१] चउरिदियाणं भंते! किं उज्जोते, अंधकारे ? गोतमा! उज्जोते वि, अंधकारे वि। [७-१ प्र.] भगवन्! चतुरिन्द्रिय जीवों के क्या उद्योत है अथवा अन्धकार है ? [७-१ उ.] गौतम! चतुरिन्द्रिय जीवों के उद्योत भी है, अन्धकार भी है। [२] से केणठेणं०? गोतमा! चतुरिदियाणं सुभाऽसुभा पोग्गला, सुभाऽसुभे पोग्गलपरिणामे, से तेणठेणं०। [७-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से चतुरिन्द्रिय जीवों के उद्योत भी हैं, अन्धकार भी हैं ? [७-२ उ.] गौतम! चतुरिन्द्रिय जीवों के शुभ और अशुभ (दोनों प्रकार के) पुद्गल होते हैं,
१. 'जाव' पद नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक का सूचक है। २. यहाँ जाव पद पृथ्वीकायादि पाँच स्थावर से लेकर द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय जीवों तक का सूचक है।