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नवमो उद्देसओ : 'रायगिह'
नवम उद्देशक : 'राजगृह' राजगृह के स्वरूप का तात्त्विक दृष्टि से निर्णय
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी। [१] उस काल और उस समय में...यावत् गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा
२. [१] किमिदं भंते! 'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति ? किं पुढवी 'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति ? आऊ 'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति ? जाव वणस्सती! जहा एयणुहेसए पंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं वत्तव्वता तहा भाणियव्वं जाव सचित्त-अचित्त-मीसयाई दव्वाइं 'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति ?
गोतमा! पुढवी वि 'नगर रायगिहं' ति पवुच्चति जाव सचित्त-अचित्त-मीसियाई दव्वाइं 'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति।
[२-१ प्र.] भगवन्! यह 'राजगृह नगर' क्या है—क्या कहलाता है ? क्या पृथ्वी राजगृह नगर कहलाता है?, अथवा क्या जल राजगृह नगर कहलाता है ? यावत् वनस्पति क्या राजगृह नगर कहलाता है ?, जिस प्रकार 'एजन' नामक उद्देशक (पंचम शतक के सप्तम उद्देशक) में पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की (परिग्रह-विषयक) वक्तव्यता कही गई है, क्या उसी प्रकार यहाँ भी कहनी चाहिए ? (अर्थात्-क्या 'कूट' राजगृह नगर कहलाता है ? शैल राजगृह नगर कहलाता है ? इत्यादि); यावत् क्या सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य (मिलकर) राजगृह नगर कहलाता है ?
[२-१ उ.] गौतम! पृथ्वी भी राजगृह नगर कहलाती है, यावत् सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य (सब मिलकर) भी राजगृह नगर कहलाता है।
[२] से केणढेणं०?
गोयमा! पुढवो जीवा ति य अजीवा ति य 'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति जाव सचित्तअचित्त-मीसियाई दव्वाइं जीवा ति य अजीवा ति य'नगरं रायगिहं' ति पवुच्चति, से तेणढेणं तं चेव।
[२-२ प्र.] भगवन्! किस कारण से (पृथ्वी को राजगृह नगर कहा जाता है,...यावत् सचित्तअचित्त-मिश्र द्रव्यों को राजगृहनगर कहा जाता है?)
१. 'जाव' शब्द से यहाँ पूर्वसूचित भगवद्वर्णन, नगर-वर्णन, समवसरण-वर्णन एवं परिषद् के आगमन-प्रतिगमन का
वर्णन कहना चाहिए। २. यहाँ 'जाव' शब्द 'तेउ-वाउ' पदों का सूचक है। ३. पाँचवें शतक के ७ वें उद्देशक (एजन) में वर्णित तिर्यक्पञ्चेन्द्रिय वक्तव्यता में टंका; कूडा, सेला आदि पदों को यहाँ .
कहना चाहिए।