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पंचम शतक : उद्देशक-८]
[५११ शंका-समाधान—इस प्रकरण से पूर्व सूत्रों में उक्त वृद्धि, हानि और अवस्थिति के ही समानार्थ क्रमशः उपचय, अपचय और सोपचयापचय शब्द हैं, फिर भी इन नये सूत्रों की आवश्यकता इसलिए है कि पूर्वसूत्रों में जीवों के परिमाण का कथन अभीष्ट है, जबकि इन सूत्रों में परिमाण की अपेक्षा बिना केवल उत्पादन और उद्वर्तन इष्ट है तथा तीसरे भंग में वृद्धि, हानि और अवस्थिति इन तीनों का समावेश हो जाता है।
॥ पंचम शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त॥
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक २४५
(ख) भगवती. हिन्दी विवेचन, भा. २, पृ. ९१२-९१३