SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५०९ पंचम शतक : उद्देशक-८] किन्तु निरुपचय-निरपचय हैं। २४. जीवा णं भंते! केवतियं कालं निरुवचयनिरवचया ? गोयमा! सव्वद्धं। [२४ प्र.] भगवन्! जीव कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? [२४ उ.] गौतम! जीव सर्वकाल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं। २५.[१] नेरतिया णं भंते! केवतियं कालं सोवचया ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभार्ग। [२५-१ प्र.] भगवन्! नैरयिक कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? [२५-१ उ.] गौतम! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक नैरयिक सोपचय रहते हैं। [२] केवतियं कालं सावचया ? एवं चेव। [२५-२ प्र.] भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक सापचय रहते हैं ? [२५-२ उ.] (गौतम!) उसी प्रकार (सोपचय के पूर्वोक्त कालमानानुसार) सापचय का काल जानना चाहिए। [३] केवतियं कालं सोवचयसावचया ? एवं चेव। [२५-३ प्र.] और वे सोपचय-सापचय कितने काल तक रहते हैं ? [२५-३ उ.] (गौतम!) सोपचय का जितना काल कहा है, उतना ही सोपचय-सापचय का काल जानना चाहिए। [४] केवतियं कालं निरुवचयनिरवचया ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [२५-४ प्र.] नैरयिक कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? [२५-४ उ.] गौतम! नैरयिक जीव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक निरुपचयनिरपचय रहते हैं। २६. एगिंदिया सव्वे सोवचयसावचया सव्वद्धं। [२६] सभी एकेन्द्रिय जीव सर्व काल (सर्वदा) सोपचय-सापचय रहते हैं। २७. सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, सोवचयसावचया वि, निरुवचयनिरवचया
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy