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पंचम शतक : उद्देशक-८] किन्तु निरुपचय-निरपचय हैं।
२४. जीवा णं भंते! केवतियं कालं निरुवचयनिरवचया ? गोयमा! सव्वद्धं। [२४ प्र.] भगवन्! जीव कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? [२४ उ.] गौतम! जीव सर्वकाल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं। २५.[१] नेरतिया णं भंते! केवतियं कालं सोवचया ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभार्ग। [२५-१ प्र.] भगवन्! नैरयिक कितने काल तक सोपचय रहते हैं ?
[२५-१ उ.] गौतम! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक नैरयिक सोपचय रहते हैं।
[२] केवतियं कालं सावचया ? एवं चेव। [२५-२ प्र.] भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक सापचय रहते हैं ?
[२५-२ उ.] (गौतम!) उसी प्रकार (सोपचय के पूर्वोक्त कालमानानुसार) सापचय का काल जानना चाहिए।
[३] केवतियं कालं सोवचयसावचया ? एवं चेव। [२५-३ प्र.] और वे सोपचय-सापचय कितने काल तक रहते हैं ?
[२५-३ उ.] (गौतम!) सोपचय का जितना काल कहा है, उतना ही सोपचय-सापचय का काल जानना चाहिए।
[४] केवतियं कालं निरुवचयनिरवचया ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। [२५-४ प्र.] नैरयिक कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ?
[२५-४ उ.] गौतम! नैरयिक जीव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक निरुपचयनिरपचय रहते हैं।
२६. एगिंदिया सव्वे सोवचयसावचया सव्वद्धं। [२६] सभी एकेन्द्रिय जीव सर्व काल (सर्वदा) सोपचय-सापचय रहते हैं। २७. सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, सोवचयसावचया वि, निरुवचयनिरवचया