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________________ ४८२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र _[८] इसी प्रकार 'गंगा महानदी के प्रतिस्रोत (विपरीत प्रवाह) में वह परमाणुपुद्गल आता है और प्रतिस्खलित होता है। इस तरह के तथा 'उदकावर्त या उदकबिन्दु में प्रवेश करता है, और वहाँ वह (परमाणु आदि) विनष्ट होता है,' (इस तरह के प्रश्नोत्तर एक परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध तक के कहने चाहिए।) विवेचन–परमाणुपुदगल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से प्रश्नोत्तर–प्रस्तुत सूत्रों में परमाणुपुद्गल से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के अवगाहन करके रहने, छिन्न-भिन्न होने, अग्निकाय में प्रवेश करने, उसमें जल जाने, पुष्करसंवर्तक महामेघ में प्रवेश करने उसमें भीग जाने, गंगानदी के प्रतिस्रोत में आने तथा उसमें प्रतिस्खलित होने, उदकावर्त या उदकबिन्दु में प्रवेश करने और वहाँ विनष्ट होने के सम्बन्ध में प्रश्न उठा कर अवगाहन करके रहने और छिन्न-भिन्न होने के प्रश्न के उत्तर की तरह ही इन सबके संगत और सम्भावित प्रश्नोत्तरों का अतिदेश किया गया है। असख्यप्रदेशी स्कन्ध तक छिन्न-भिन्नता नहीं, अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में कादाचित्क छिन्नभिन्नता–छेदन-दो टुकड़े हो जाने का नाम है और भेदन विदारण होने या बीच में से चीरे जाने का नाम है। परमाणुपुद्गल से लेकर असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक सूक्ष्मपरिणामवाला होने से उसका छेदन-भेदन नहीं हो पाता, किन्तु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध बादर परिणाम वाला होने से वह कदाचित् छेदनभेदन को प्राप्त हो जाता है, कदाचित् नहीं। इसी प्रकार अग्निकाय में प्रवेश करने तथा जल जाने आदि सभी प्रश्नों के उत्तर के सम्बन्ध में छेदन-भेदन आदि की तरह ही समझ लेना चाहिए। अर्थात् सभी उत्तरों का स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक सार्ध, समध्य आदि एवं तद्विपरीत होने के विषय में प्रश्नोत्तर ९. परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सअड्ढे समझे सपदेसे ? उदाहु अणड्ढे अमझे अपदेसे? गोयमा! अणड्ढे अमझे अपदेसे, नो सअड्ढे नो समझे नो सपदेसे। [९ प्र.] भगवन् ! क्या परमाणुपुद्गल सार्ध, समध्य और सप्रदेश है, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश है ? [९ उ.] गौतम! (परमाणुपुद्गल) अनर्द्ध अमध्य और अप्रदेश है, किन्तु सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश नहीं है। १०.[१] दुपदेसिए णं भंते! खंधे किं सअद्धे समझे सपदेसे ? उदाहु अणद्धे अमज्झे अपदेसे ? गोयमा! सअद्धे अमझे, सपदेसे, णो अणद्धे णो समझे णो अपदेसे। वियाहपण्णत्ति सुत्तं, (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. २१०-२११ भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २३३
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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