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________________ पंचम शतक : उद्देशक-७] [४८१ [३-२ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। परमाणुपुद्गल में शस्त्र क्रमण (प्रवेश) नहीं कर सकता। ४. एवं जाव असंखेज्जपएसिओ। [४] इसी तरह (द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर) यावत् असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक समझ लेना चाहिए। (निष्कर्ष यह है कि एक परमाणु से असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक किसी भी शस्त्र से छिन्नभिन्न नहीं होता, क्योंकि कोई भी शस्त्र इसमें प्रविष्ट नहीं हो सकता।) ५.[१] अणंतपदेसिए णं भंते! खंधे असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? हंता, ओगाहेज्जा। [५-१ प्र.] भगवन् ! क्या अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तलवार की धार पर या क्षुरधार पर अवगाहन करके रह सकता है ? [५-१ उ.] हाँ, गौतम! वह रह सकता है। [२] से णं तत्थ छिज्जेज वा भिजेज वा ? गोयमा! अत्यंगइए छिज्जेज वा भिज्जेज वा, अत्यंगइए नो छिज्जेज वा नो भिज्जेज वा। [५-२ प्र.] भगवन् ! क्या तलवार की धार को या क्षुरधार को अवगाहित करके रहा हुआ अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न या भिन्न हो जाता है ? [५-२ उ.] हे गौतम! कोई अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न या भिन्न हो जाता है, और कोई न छिन्न होता है, न भिन्न होता है। ६. एवं अगणिकायस्स मझमझेणं। तहिं णवरं 'झियाएज्जा' भाणितव्वं। [६] जिस प्रकार छेदन-भेदन के विषय में प्रश्नोत्तर किए गए हैं, उसी तरह से 'अग्निकाय के बीच में प्रवेश करता है। इसी प्रकार के प्रश्नोत्तर एक परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के कहने चाहिए। किन्तु अन्तर इतना ही है कि जहाँ उस पाठ में सम्भावित छेदन-भेदन का कथन किया गया है, वहाँ इस पाठ में 'जलता है' इस प्रकार कहना चाहिए। ७. एवं पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मझमझेणं। तहिं 'उल्ले सिया'। [७] इसी प्रकार पुष्कर-संवर्तक नामक महामेघ के मध्य में (बीचोंबीच) प्रवेश करता है, इस प्रकार के प्रश्नोत्तर (एक परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के) कहने चाहिए। किन्तु वहाँ सम्भावित 'छिन्न-भिन्न होता है' के स्थान पर यहाँ 'गीला होता —भीग जाता है', कहना चाहिए। ८. एवं गंगाए महाणदीए पडिसोतं हव्वमागच्छेज्जा। तहिं विणिघायमावज्जेजा, उदगावत्तं वा उदगबिदुं वा ओगाहेज्जा, से णं तत्थ परियावज्जेज्जा।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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