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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [२-३ प्र.] भगवन् ! क्या चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध कम्पित होता है ?
[२-३ उ.] गौतम! कदाचित् कम्पित होता है, कदाचित् कम्पित नहीं होता; कदाचित् उसका एकदेश कम्पित होता है, कदाचित् एकदेश कम्पित नहीं होता; कदाचित् एकदेश कम्पित होता है, और बहुत देश कम्पित नहीं होते; कदाचित् बहुत देश कम्पित होते हैं और एक देश कम्पित नहीं होता; कदाचित् बहुत देश कम्पित होते हैं और बहुत देश कम्पित नहीं होते। _ [४] जहा चउप्पदेसिओ तहा पंचपदेसिओ, तहा जाव अणंतपदेसिओ।
[२-४] जिस प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध से लेकर यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक (प्रत्येक स्कन्ध के लिए) कहना चाहिए।
विवेचन–परमाणुपुद्गल और स्कन्धों के कम्पन आदि के विषय में प्ररूपणा–प्रस्तुत सूत्र में परमाणुपुद्गल तथा द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध के कम्पन (एजन), विशेष कम्पन, चलन, स्पन्दन, क्षोभण और उस-उस भाव में परिणमन के सम्बन्ध में प्रश्न उठाकर उसका सैद्धान्तिक अनेकान्तशैली से समाधान किया गया है।
परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशीस्कन्ध तक कम्पनादि धर्म-पुद्गलों में कम्पनादि धर्म कादाचित्क हैं। इस कारण परमाणुपुद्गल में कम्पन आदि विषयक दो भंग, द्विप्रदेशिक स्कन्ध में तीन भंग, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध में पांच भंग और चतुष्प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक प्रत्येक स्कन्ध में कम्पनादि के ६ भंग होते हैं।
विशिष्ट शब्दों के अर्थ एयति-कांपता है। वेयति विशेष कांपता है। सिय-कदाचित्। परमाणु पुद्गल से लेकर अनन्तदेशी स्कन्ध तक के विषय में विभिन्न पहलुओं से प्रश्नोत्तर
३.[१] परमाणुपोग्गले णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? हंता, ओगाहेज्जा।
[३-१ प्र.] भगवन् ! क्या परमाणुपुद्गल तलवार की धार या क्षुरधार (उस्तरे की धार) पर अवगाहन करके रह सकता है ?
[३-१ उ.] हाँ, गौतम! वह अवगाहन करके रह सकता है। [२] से णं भंते! तत्थ छिज्जेज वा भिज्जेज वा ? गोयमा! णो इणढे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं कमति।
[३-२ प्र.] भगवन् ! उस धार पर अवगाहित होकर रहा हुआ परमाणुपुद्गल छिन्न या भिन्न हो जाता है ?
वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. २१०-२११ भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २३२