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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है', यों कहकर यावत् गौतमस्वामी विचरने लगे।
विवेचन-मिथ्यादोषारोपणकर्ता के दुष्कर्मबन्ध प्ररूपणा जो व्यक्ति दूसरे पर अविद्यमान या अशोभनीय कार्य करने का दोषारोपण करता है, वह उसी रूप में उसका फल पाता है। इस प्रकार दुष्कर्मबन्ध की प्ररूपणा की गई है।
ब्रह्मचर्यपालक को अब्रह्मचारी कहना, यह सद्भूत का अपलाप है, अचोर को चोर कहना असद्भूत दोष का आरोपण है। ऐसा करके किसी पर मिथ्या दोषारोपण करने से इसी प्रकार का फल देने वाले कर्मों का बन्ध होता है। ऐसा कर्मबन्ध करने वाला वैसा ही फल पाता है।
कठिन शब्दों की व्याख्या-अलिएणं-सत्य बात का अपलाप करना। असब्भूएणंअसद्भूत अविद्यमान बात को प्रकट करना। अब्भक्खाणेणं-अभ्याख्यान-मिथ्यादोषारोपण।
॥ पंचम शतक : छठा उद्देशक समाप्त॥
१. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ) भा. १, पृ. २१०, (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक २३२