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छट्ठो उद्देसओ : 'आउ'
छठा उद्देशक : 'आयुष्य'
अल्पायु और दीर्घायु के कारणभूत कर्मबन्ध के कारणों का निरूपण
कहं णं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
गोतमा ! तिहिं ठाणेहिं, तं जहा— पाणे अइवाएत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ।
[१ प्र.] भगवन्! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किस कारण से बांधते हैं ?
[१ उ.] गौतम! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं- (१) प्राणियों की हिंसा करके, (२) असत्य भाषण करके और (३) तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम (रूप चतुर्विध आहार) दे (प्रतिलाभित) कर। इस प्रकार (तीन कारण से) जीव अल्पायुष्कफल वाला (कम जीने का कारणभूत) कर्म बांधते हैं।
२. कहं णं भंते! जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं—नो पाणे अतिवाइत्ता, नो मुसं वदित्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिज्जेणं असण- पाण- खाइम - साइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ।
[२ प्र.] भगवन् ! जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म कैसे बांधते हैं ?
[२ उ.] गौतम! तीन कारणों से जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं— (१) प्राणातिपात न करने से, (२) असत्य न बोलने से और (३) तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम (रूप चतुर्विध आहार) देने से । इस प्रकार (तीन कारणों) से जीव दीर्घायुष्क के (कारणभूत) कर्म का बन्ध करते हैं ।
३. कहं णं भंते! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
गोमा ! पाणे अतिवाइत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता खिंसित्ता गरहित्ता अवमन्नित्ता, अन्नतरेणं अमणुण्णेणं अपीतिकारएणं असण- पाण- खाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता, एवं खलु जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ।
[३ प्र.] भगवन्! जीव अशुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से (कैसे) बांधते हैं ?
[३ उ.] गौतम ! प्राणियों की हिंसा करके, असत्य बोल कर, एवं तथारूप श्रमण और माहन की (जातिप्रकाश द्वारा ) हीलना, (मन द्वारा) निन्दा, खिंसना (लोगों के समक्ष झिड़कना, बदनाम करना ),