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________________ ४१६] __ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र हंता, गोयमा! जाव भवति। एवं एतेणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव०। [२४ प्र.] भगवन् ! जब धातकीखण्डद्वीप के मन्दरपर्वतों से पूर्व में दिन होता है, तब क्या पश्चिम में भी दिन होता है ? और जब पश्चिम में दिन होता है, तब क्या धातकीखण्डद्वीप के मन्दरपर्वतों से उत्तर-दक्षिण में रात्रि होती है ? [२४ उ.] हाँ, गौतम! (यह इसी तरह होता है), यावत् (रात्रि) होती है और इसी अभिलाप से जानना चाहिए, यावत् २५. जदा णं भंते! दाहिणड्ढे पंढमा ओसप्पिणी तदा णं उत्तरड्ढे, जदा णं उत्तरड्ढे तया णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं णेवत्थि ओसप्पिणी जाव समणाउसो!? हंता, गोयमा! जाव समणाउसो! [२४ प्र.] भगवन् ! जब दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी होती है ? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या धातकीखण्ड द्वीप के मन्दरपर्वतों से पूर्व पश्चिम में भी अवसर्पिणी नहीं होती? यावत् उत्सर्पिणी नहीं होती? परन्तु आयुष्यमान् श्रमणवर्य! क्या वहाँ अवस्थितकाल होता है ? __ [२५ उ.] हाँ, गौतम! (यह इसी तरह होता है,) यावत् हे आयुष्मान् श्रमणवर्य! अवस्थित काल होता है। २६. जहा लवणसमुदस्स वत्तव्वता तहा कालोदस्स वि भाणितव्वा, नवरं कालोदस्स नामं भाणितव्वं। । [२६] जैसे लवणसमुद्र के विषय में वक्तव्यता कही, वैसे कालोद (कालोदधि) के सम्बन्ध में भी कह देनी चाहिए। विशेष इतना ही है कि वहाँ लवणसमुद्र के स्थान पर कालोदधि का नाम कहना चाहिए। २७. अभितरपुक्खरद्धे णं भंते! सूरिया उदीचि-पाईणमुग्गच्छ जहेव धायइसंडस्स वत्तव्वता तहेव अभितरपुक्खरद्धस्स वि भाणितव्वा । नवरं अभिलावो जाणेयव्वो जाव तदा णं अब्भितर पुक्खरद्धे मंदराणं पुरथिम-पच्चत्थिमेणं नेवत्थि ओसप्पिणी नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्टिते णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति०। ॥पंचमसतस्स पढमो उद्देसओ॥ [२७ प्र.] भगवन्! आभ्यन्तरपुष्करार्द्ध में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर अग्निकोण में अस्त होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ? [२७ उ.] जिस प्रकार धातकीखण्ड की वक्तव्यता कही गई, उसी प्रकार आभ्यन्तरपुष्करार्द्ध की वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि धातकीखण्ड के स्थान में आभ्यन्तरपुष्करार्द्ध का नाम कहना चाहिए; यावत्-आभ्यन्तरपुष्करार्द्ध में मन्दरपर्वतों के पूर्व-पश्चिम में न तो अवसर्पिणी है, और
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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