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पंचम शतक : उद्देशक-१]
[४१५ वक्तव्यता यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध में भी कहनी चाहिए। विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिए—भगवन्! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, इत्यादि सारा कथन उसी प्रकार कहना चाहिए, यावत् 'तब लवणसमुद्र के पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है।' इसी अभिलाप द्वारा सब वर्णन जान लेना चाहिए।
[२]जदा णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति तदा णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ ? जदा णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ तदा णं लवणसमुद्दे पुरथिम-पच्चत्थिमेणं नेवत्थि ओसप्पिणी, णेवत्थि उस्सप्पिणी समणाउसो! ?
हंता, गोयमा! जाव समणाउसो!
[२२-२ प्र.] भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी (काल) होता है, तब क्या लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती? उत्सर्पिणी नहीं होती? किन्तु हे दीर्घजीवी श्रमणपुंगव! क्या वहां अवस्थित (अपरिवर्तनीय) काल होता है ?
। [२२-२ उ.] हाँ, गौतम! (यह इसी तरह होता है।) और वहाँ...यावत् आयुष्मान श्रमणवर! अवस्थित काल कहा गया है ।
- २३. धायतिसंडेणं भंते! दीवे सूरिया उदीचि-पादीणमुग्गच्छ....? जहेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वता भणिता सच्चेव धायइसंडस्स वि भाणितव्वा, नवरं इमेणं अभिलावेणं सव्वे आलावगा भाणित्तवा—जता णं भंते! धायतिसंडे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवति तदा णं उत्तरड्ढे वि? जदा णं उत्तरड्ढे वि तदा णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वताणं पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं राती भवति ?
हंता, गोयमा! एवं जाव राती भवति।
[२३ प्र.] भगवन् ! धातकीखण्ड द्वीप में सूर्य, ईशानकोण में उदय होकर क्या अग्निकोण में अस्त होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[२३ उ.] हे गौतम! जिस प्रकार की वक्तव्यता जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में कही गई है, उसी प्रकार की सारी वक्तव्यता धातकीखण्ड के विषय में भी कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि इस पाठ का उच्चारण करते समय सभी आलापक इस प्रकार कहने चाहिए
[प्र.] भगवन् ! जब धातकीखण्ड के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में दिन होता है, तब क्या धातकीखण्ड द्वीप के मन्दरपर्वतों से पूर्व पश्चिम में रात्रि होती है ?
[उ.] हाँ, गौतम! यह इसी तरह (होता है।) यावत् रात्रि होती है।
२४. जदा णं भंते! धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वताणं पुरथिमेणं दिवसे भवति तदा णं पच्चत्थिमेणं वि ? जदा णं पच्चत्थिमेण वि तदा णं धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं उत्तरदाहिणेणं राती भवति ?