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________________ पंचम शतक : उद्देशक-१] [४१३ दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेणं णेवत्थि ओसप्पिणी णेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्टिते णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो! ? हंता, गोयमा! तं चेव उच्चारेयव्वं जाव समणाउसो! [२० प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी होती है?; और जब उतरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत के पूर्व पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती ?, उत्सर्पिणी नहीं होती ?, किन्तु हे आयुष्मान् श्रमणपुंगव! क्या वहाँ अवस्थित काल कहा गया है? [२० उ.] हाँ, गौतम! इसी तरह होता है। यावत् (श्रमणपुंगव! तक) पूर्ववत् सारा वर्णन कह देना चाहिए। २१. जहा ओसप्पिणीए आलावओ भणितो एवं उस्सप्पिणीए वि भाणितव्यो। [२१] जिस प्रकार अवसर्पिणी के विषय में आलापक कहा है, उसी प्रकार उत्सर्पिणी के विषय में भी कहना चाहिए। विवेचन-विविध दिशाओं एवं प्रदेशों (क्षेत्रों) में ऋतु से लेकर उत्सर्पिणी काल तक के अस्तित्व की प्ररूपणा–प्रस्तुत सात सूत्रों में वर्षा आदि ऋतुओं के विविध दिशाओं और प्रदेशों में अस्तित्व की प्ररूपणा करके अहोरात्र, आनपान, मुहूर्त आदि के अस्तित्व के सम्बन्ध में अतिदेश किया गया है। तदन्तर अयन, युग, वर्षशत आदि से लेकर सागरोपमपर्यन्त तथा अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल तक के पूर्वादि दिशाओं तथा प्रदेशों में अस्तित्व का अतिदेशपूर्वक प्ररूपण किया गया है। विविध कालमानों की व्याख्या-वासाणं वर्षाऋतु का, हेमंताणं हेमन्तऋतु का, गिम्हाण-ग्रीष्मऋतु का। ऋतु भी एक प्रकार का कालमान है। वर्षभर में यों तो ६ ऋतुएँ मानी जाती है-बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त और शिशिर । परन्तु यहाँ तीन ऋतुओं का नामोल्लेख किया गया है, इसलिए चार-चार महीने की एक-एक ऋतु मानी जानी चाहिए।अणंतर-पुरक्खडसमयंसि-दक्षिणार्द्ध में प्रारम्भ होने वाली वर्षाऋतु प्रारम्भ की अपेक्षा अनन्तर (तुरन्त पूर्व) भविष्यत्कालीन समय को अनन्तरपुरस्कृत समय कहते हैं। अणंतरपच्छाकडसमयंसि-पूर्व और पश्चिम महाविदेह में प्रारम्भ होने वाली वर्षा ऋतु प्रारम्भ की अपेक्षा अनन्तर (तुरंत बाद के) अतीतकालीन समय को अनन्तर पश्चात्कृत समय कहते हैं। समय (अत्यन्त सूक्ष्मकाल) से लेकर ऋतु तक काल के १० भेद होते हैं (१) समय, (काल का सबसे छोटा भाग, जिसका दूसरा भाग न हो सके), (२) आवलिया त समय), (३) आणापाण (आनपान-उच्छवास-नि:श्वास, संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ्वास और इतनी ही आवलिकाओं का एक निःश्वास),(४) थोवं (स्तोक-सात आनप्राणों अथवा प्राणों का एक स्तोक), (५) लवं=(सात स्तोकों का एक लव), (६) मुहत्तं (मुहूर्त-७७ लव, अथवा ३७७३ श्वासोच्छ्वास, या दो घड़ी अथवा ४८ मिनट का एक मुहूर्त), (७) अहोरत्तं—(अहोरात्र–३० मुहूर्त का एक अहोरात्र),(८) पक्खं (पक्ष=१५ दिनरात-अहोरात्र का एक पक्ष), (९) मासं (मास-दो पक्ष का एक महीना), और उऊ (ऋतु-दो मास की एक ऋतु-मौसम)। अयन से लेकर सागरोपम तक अयणं (अयन-तीन ऋतुओं का एक), संवच्छरं
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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