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________________ पंचम शतक : उद्देशक-१] [४११ समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षा-ऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर-पर्वत से पूर्व-पश्चिम में वर्षा ऋतु का प्रथम समय अनन्तर-पुरस्कृत समय में होता है ? (अर्थात्-जिस समय में दक्षिणार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रारम्भ होता है, उसी समय के तुरंत पश्चात् दूसरे समय में मन्दरपर्वत से पूर्व-पश्चिम में वर्षाऋतु प्रारम्भ होती है ?) [१४ उ.] हाँ, गौतम! (यह इसी तरह होता है। अर्थात्-) जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब उसी तरह यावत् होता है। १५. जदा णं भंते! जंबु० मंदरस्स० पुरथिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जति तया णं पच्चत्थिमेण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ ? जया णं पच्चत्थिमेणं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ तया णं जाव मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं अणंतरपच्छाकडसमयंसि वासाणं प० स० पडिवन्ने भवति ? हंता, गोयमा! जदा णं जंबु० मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव पडिवन्ने भवति। . [१५ प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप में मंदराचल से पूर्व में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब पश्चिम में भी क्या वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है? और जब पश्चिम में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है. तब. यावत मन्दर पर्वत से उत्तर दक्षिण में वर्षा (ऋत) का प्रथम समय अनन्तरपश्चात्कृत् समय में होता है? (अर्थात्-मन्दरपर्वत से पश्चिम में वर्षा ऋतु प्रारम्भ होने के प्रथम समय पहले एक समय में वहाँ (मन्दरपर्वत के) उत्तर-दक्षिण में वर्षा प्रारम्भ हो जाती है?) [१५ उ.] हाँ, गौतम! (इसी तरह होता है। अर्थात् —) जब जम्बूद्वीप में मन्दराचल से पूर्व में वर्षाऋतु प्रारम्भ होती है, तब पश्चिम में भी इसी प्रकार यावत्-उत्तर दक्षिण में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर-पश्चात्कृत समय में होता है, इसी तरह सारा वक्तव्य कहना चाहिए १६. एवं जहा समएणं अभिलावो भणिओ वासाणं तहा आवलियाए' वि भाणियव्वो २, आणापाणूण वि ३, थोवेण वि ४, लवेण वि ५ मुहुत्तेण वि ६, अहोरत्तेण वि ७, पक्खेण वि ८, मासेण वि ९, उउणा वि १० । एतेसिं सव्वेसिं जहा समयस्स अभिलाओ तहा भाणियव्वो। [१६] जिस प्रकार वर्षाऋतु के प्रथम समय के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार वर्षाऋतु के प्रारम्भ की प्रथम आवलिका के विषय में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार आन-पान, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु; इन सबके विषय में भी समय के अभिलाप की तरह कहना चाहिए। १७. जदा णं भंते! जंबु० दाहिणड्ढे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जति ? जहेव वासाणं आवलिका सम्बन्धी पाठ इस प्रकार कहना चाहिए—'जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जइ तया णं उत्तरड्ढे वि, जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेणं अणंतरपुरक्खडसमयंसि वासाणं पढमा आवलिया पडिवज्जइ?"हंता गोयमा! इत्यादि। इसी प्रकार आनपान आदि पदों का भी सूत्र पाठ समझ लेना चाहिए। सं.
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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