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________________ पंचम शतक : उद्देशक-१] [४०७ चार विदिशएँ, अर्थात् चार कोण-उदीण-पाईणं = उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा = ईशानकोण; दाहिण-पडीणं-दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा-नैऋत्यकोण; पाईण-दाहिणं-पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा-आग्नेयकोण तथा पडीण-उदीणं-पश्चिम और उत्तर के बीच की दिशा -वायव्यकोण। उदीण-उत्तर दिशा के पास का प्रदेश उदीचीन तथा पाईण-प्राची (पूर्व) दिशा के निकट का प्रदेश–प्राचीन। जम्बूद्वीप में दिवस और रात्रि का कालमान ७. जदा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति! जदा णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेणं जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति ? हंता, गोयमा! जदा णं जंबु० जाव दुवालसमुहुत्ता राती भवति। [७ प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी उत्कृष्ट (सब से बड़ा) अठारह महर्त्त का दिन होता है ?. और जब उत्तरार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से पूर्व-पश्चिम में जघन्यं (छोटी से छोटी) बारह मुहूर्त की रात्रि होती है? [७ उ.] हाँ, गौतम! (यह इसी तरह होती है। अर्थात्-) जब जम्बूद्वीप में, यावत्....बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। ८. जदा णं जंबु० मंदरस्स पुरत्थिमेणं उक्कोसए अट्ठारस जाव तदा णं जंबुद्दीवे दीवे पच्चत्थिमेण वि उक्को० अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति? जया णं पच्चत्थिमेणं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तर० दुवालसमुहुत्ता जाव राती भवति ? हंता, गोयमा! जाव भवति। [८ प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के मेरु-पर्वत से पूर्व में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के पश्चिम में भी उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है ?, और भगवन्! जब पश्चिम में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिवस होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के उत्तर में जघन्य (छोटी से छोटी) बारह मुहूर्त की रात्रि होती है ? [८ उ.] हाँ, गौतम! यह इसी तरह-यावत्....होता है। ९. जदा णं भंते! जंबु० दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति तदा णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति ? जदा णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति तदा णं जंबु० मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं सातरेगा दुवालसमुहुत्ता राती भवति ? हंता, गोयमा! जदा णं जंबु० जाव राती भवति। १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २०७-२०८ (ख)भगवती० (विवेचनयुक्त) (पं. घेवरचन्दजी) भा. २, पृ.७५३ से ७५६ तक
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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