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________________ ४०६] _ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सूर्य के उदय-अस्त का व्यवहार : दर्शक लोगों की दृष्टि की अपेक्षा से यहाँ जो दिशा, विदिशा या समय की दृष्टि से सूर्य का उदय-अस्त बताया गया है, वह सब व्यवहार दर्शकों की दृष्टि की अपेक्षा से बताया है, क्योंकि समग्र भूमण्डल पर सूर्य के उदय-अस्त का समय या दिशा-विदिशा (प्रदेश) नियत नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो सूर्य तो सदैव भूण्डल पर विद्यमान रहता है, किन्तु जब सूर्य के समक्ष किसी प्रकार की आड़ (ओट या व्यवधान) आ जाती है, तब (उस समय) उस देश (उस दिशा-विदिशा) के लोग उक्त सूर्य को देख नहीं पाते, तब उस देश के लोग इस प्रकार का व्यवहार करते हैं—अब सूर्य अस्त हो गया है। जब सूर्य के सामने किसी प्रकार की आड़ नहीं होती, तब उस देश (दिशा-विदिशा) के लोग सूर्य को देख पाते हैं, और वे इस प्रकार का व्यवहार करते हैं-अब (इस समय) सूर्य उदय हो गया है। एक आचार्य ने कहा है सूर्य प्रति समय ज्यों-ज्यों आकाश में आगे गति करता जाता है, त्यों-त्यों निश्चित ही इस तरफ रात्रि होती जाती है। इसलिए सूर्य की गति पर ही उदयअस्त का व्यवहार निर्भर है। मनुष्यों की (दृष्टि की) अपेक्षा से उदय और अस्त दोनों क्रियाएं अनियत हैं, क्योंकि अपने-अपने देश (दिशा) भेद के कारण कोई किसी प्रकार का और दूसरा किसी अन्य प्रकार का व्यवहार करते हैं। इससे सिद्ध है कि सूर्य आकाश में सब दिशाओं में गति करता है; इस प्ररूपणा के अनुसार इस मान्यता का स्वतः निराकरण हो जाता है कि 'सूर्य पश्चिम की ओर के समुद्र में प्रविष्ट होकर पाताल में चला जाता है, फिर पूर्व की ओर के समुद्र पर उदय होता है।१।। सूर्य सभी दिशाओं में गतिशील होते हुए भी रात्रि क्यों ? यद्यपि सूर्य सभी दिशाओं (देशों) में गति करता है, तथापि उसका प्रकाश अमुक सीमा तक ही फैलता है, उससे आगे नहीं, इसलिए जगत् में जो रात्रि-दिवस का व्यवहार होता है, वह निर्बाध है। आशय यह है कि जितनी सीमा तक जिस देश में सूर्य का प्रकाश, जितने समय तक पहुंचता है, उतनी सीमा तक उस प्रदेश में, उतने समय तक दिवस होता है, शेष सीमा में, शेष प्रदेश में उतने समय रात्रि होती है। इसलिए सूर्य के प्रकाश का क्षेत्र मर्यादित होने के कारण रात्रि-दिवस का व्यवहार होता है। एक ही समय में दो दिशाओं में दिवस कैसे?—जम्बूद्वीप में सूर्य दो हैं, इसलिए एक ही समय में दो दिशाओं में दिवस होता है और दो दिशाओं में रात्रि होती है। दक्षिणार्द्ध और उत्तरार्द्ध का आशय यदि यह अर्थ माना जायेगा कि जम्बूद्वीप के उत्तर के सम्पूर्ण खण्ड और दक्षिण के सम्पूर्ण खण्ड में दिवस होता है, तब तो सर्वत्र दिवस होगा, रात्रि कहीं नहीं; मगर यहाँ उत्तरार्द्ध और दक्षिणार्द्ध के ये अर्थ अभीष्ट न होकर उत्तरदिशा में आया हुआ अमुक भाग 'उत्तरार्द्ध' और दक्षिणदिशा में आया हुआ अमुक भाग 'दक्षिणार्द्ध' अर्थ ही अभीष्ट है। इसी कारण पूर्व और पश्चिम दिशा में रात्रि का होना संगत हो सकता है। १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २०७ (ख) जह-जह समये-समये पुरओ संचरइ भक्खरो गयणे । तह-तह इओऽवि नियमा, जायइ रयणी य भावत्थो ॥१॥ एवं च सइ नराणं उदयत्थमणाई होतिऽनिययाई । सयदेसभेए कस्सइ किंचि ववदिस्सइ नियमा ॥२॥ -भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक २०७ में उद्धृत
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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