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________________ [ ४०५ पंचम शतक : उद्देशक - १] हंता, गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीण-पादीणमुग्गच्छ जाव' उदीचि -पादीणमा गच्छंति । [४ प्र.] भगवन्! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सूर्य क्या उत्तरपूर्व (ईशान कोण) में उदय होकर पूर्वदक्षिण (आग्नेयकोण) में अस्त होते (होने आते हैं ? अथवा आग्नेय कोण में उदय होकर दक्षिणपश्चिम (नैर्ऋत्यकोण) में अस्त होते हैं ? अथवा नैर्ऋत्य कोण में उदय होकर पश्चिमोत्तर (वायव्यकोण) में अस्त होते हैं, या फिर पश्चिमोत्तर (वायव्यकोण) में उदय होकर उत्तरपूर्व (ईशान कोण) में अस्त होते हैं ? [४ उ.] हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीप में सूर्य उत्तरपूर्व ईशानकोण में उदित होकर अग्निकोण (पूर्वदक्षिण) में अस्त होते हैं, यावत् (पूर्वोक्त कथनानुसार ) ... ईशानकोण में अस्त होते हैं । ५. जदा णं भंते! जंबुद्दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवति तदा णं उत्तरड्ढे दिवसे भवति ? दाणं उत्तरड्ढे दिवसे भवति तदा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम - पच्चत्थिमेणं राती भवति ? हंता, गोयमा ! जदा णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे जाव राती भवति । [५ प्र.] भगवन्! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी दिन होता है ? और जब जम्बूद्वीप के उत्तरार्द्ध में दिन होता है, तब क्या मेरुपर्वत से पूर्व-पश्चिम में रात्रि होती है ? [५ उ.] हाँ, गौतम! (यह इसी तरह होता है; अर्थात्) जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, तब यावत् रात्रि होती है । ६. जदा णं भंते! जंबु० मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं दिवसे भवति तदा णं पच्चत्थिमेणं वि दिवसे भवति ? जदा णं पच्चत्थिमेणं दिवसे भवति तदा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं राती भवति ? हंता, गोयमा ! जदा णं जंबु० मंदर० पुरत्थिमेणं दिवसे जाव राती भवति । [६ प्र.] भगवन्! जब जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में दिन होता है, तब क्या पश्चिम में भी दिन होता है ? और जब पश्चिम में दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर-दक्षिण में रात्रि होती है ? [६ उ.] गौतम ! हाँ, इसी प्रकार से होता है; अर्थात् जब जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत से पूर्व में दिन होता है, तब यावत् - रात्रि होती है। विवेचन—– जम्बूद्वीप में सूर्यों के उदय-अस्त एवं दिवस - रात्रि से सम्बन्धित प्ररूपणाप्रस्तुत चार सूत्रों में से दो सूत्रों में जम्बूद्वीपान्तर्गत सूर्यों का विभिन्न विदिशाओं (कोणों से उदय और अस्त का निरूपण किया गया है तथा पिछले दो सूत्रों में जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध, उत्तरार्द्ध, पूर्व-पश्चिम, उत्तरदक्षिण आदि की अपेक्षा से दिन और रात का प्ररूपण किया गया है। १. यहाँ 'जाव' पद से सम्पूर्ण प्रश्नगत वाक्य सूचित किया गया है।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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