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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र दर्शन-वन्दनार्थ परिषद् का आगमन तथा धर्मोपदेश, श्रवण के पश्चात् पुनः गमन आदि का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराया गया है, ताकि पाठक यह स्पष्टतया समझ सकें कि प्रथम उद्देशक में वर्णित विषयों का निरूपण चम्पानगरी में हुआ था।
चम्पानगरी : तब और अब –औपपातिकसूत्र में चम्पानगरी का विस्तृत वर्णन मिलता है, तद्नुसार 'चम्पा' ऋद्धियुक्त, स्तमित एवं समृद्ध नगरी थी। महावीर-चरित्र के अनुसार अपने पिता श्रेणिक राजा की मृत्यु के शोक के कारण सम्राट कोणिक मगध की राजधानी राजगृह में रह नहीं सकता था, इस कारण उसने वास्तुशास्त्रियों के परामर्श के अनुसार एक विशाल चम्पॉवृक्ष वाले स्थान को पसंद करके अपनी राजधानी के हेतु चम्पानगरी बसाई। इसी चम्पानगरी में दधिवाहन राजा की पुत्री चन्दनबाला का जन्म हुआ था। पाण्डवकुलभूषण प्रसिद्ध दानवीर कर्ण ने इसी नगरी को अंगदेश की राजधानी बनाया था। दशवैकालिकसूत्र-रचयिता आचार्य शय्यंभवसूरि ने राजगृह से आए हुए अपने लघुवयस्क पुत्र मनक को इसी नगरी में दीक्षा थी दी और यहीं दशवैकालिकसूत्र की रचना की थी। बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी के पांच कल्याणक इसी नगरी में हुए थे। इस नगरी के बंद हुए दरवाजों को महासती सुभद्रा ने अपने शील की महिमा से अपने कलंक निवारणार्थ कच्चे सूत की चलनी बांध कर उसके द्वारा कुंए में से पानी निकाला और तीन दरवाजों पर छींट कर उन्हें खोला था। चौथा दरवाजा ज्यों का त्यों बंद रखा था। परन्तु बाद में वि.सं. १३६० में लक्षणावती के हम्मीर और सुलतान समदनी ने शंकरपुर का किला बनाने हेतु उपयोगी पाषाणों के लिए इस दरवाजे को तोड़कर इसके कपाट ले लिये थे। वर्तमान में चम्पानगरी चम्पारन कस्बे के रूप में भागलपुर के निकटवर्ती एक जिला है। महात्मा गाँधीजी ने चम्पारन में प्रथम सत्याग्रह किया था। जम्बूद्वीप में सूर्यों के उदय-अस्त एवं रात्रि-दिवस से सम्बन्धित प्ररूपणा
३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती णामं अणगारे गोतमे गोत्तेणं जाव एवं वदासी
[३] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी (शिष्य) गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे, यावत् उन्होंने इस प्रकार पूछा
४. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उदीण-पादीणमुग्गच्छ पादीण-दाहिणमागच्छंति ? पादीण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीणमागच्छंति ? दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति ? पडीण-उदीणमुग्गच्छ उदीचि-पादीणमागच्छंति ? १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पाक २०७
(क) जिनप्रभसूरिरचित 'चम्पापुरीकल्प' (ख) हेमचन्द्राचार्यरचित महावीरचरित्र सर्ग १२, श्लोक १८० से १८९ तक (ग) आचार्य शय्यंभवसूरिरचित परिशिष्टपर्व सर्ग ५, श्लोक ६८,८०,८५
(घ) भगवतीसूत्र (टीकानुवाद टिप्पणयुक्त) खण्ड २, पृ. १४४ ३. 'जाव' पद से गौतमस्वामी का समस्त वर्णन एवं उपासनादि कहना चाहिए।