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________________ दसमो उद्देसओ : परिसा दशम उद्देशक : परिषद् चमरेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक की परिषद् सम्बन्धी प्ररूपणा १. [ १ ] रायगिहे जाव एवं वयासी— चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररण्णो कति परिसाओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा समिता चंडा जाता । [१-१ प्र.] राजगृह नगर में यावत् श्री गौतम ने इस प्रकार पूछा— भगवन् ! 'असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएँ (सभाएँ) कही गई हैं ? [१-१ उ.] हे गौतम! उसकी तीन परिषदाएँ कही गई हैं, यथा— समिका ( या शमिका या शमिता), चण्डा और जाता । [२] एवं जहाणुपुव्वीए जाव अच्चुओ कप्पो । सेवं भंते! सेवं भंते! ति० । ॥ तइयसए : दसमोद्देसो ॥ ॥ ततियं सयं समत्तं ॥ [१२] इसी प्रकार क्रमपूर्वक यावत् अच्युतकल्प तक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं । विवेचन— असुरराज चमरेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक की परिषदा - प्ररूपणा ——— प्रस्तुत सूत्र में भवनपति देवों के असुरेन्द्र से लेकर अच्युत देवलोक के इन्द्र तक की परिषदों का निरूपण किया गया है । तीन परिषदें : नाम और स्वरूप प्रस्तुत सूत्र में सर्वप्रथम असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन परिषदें बताई गई हैं— समिका या शमिका, चण्डा और जाता। जीवाभिगमसूत्र के अनुसार — स्थिर स्वभाव और समता के कारण इसे 'समिका' कहते हैं, स्वामी द्वारा किये गये कोप एवं उतावल को शान्त करने की क्षमता होने से इसे 'शमिका' भी कहते हैं, तथा उद्धततारहित एवं शान्त स्वभाववाली
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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