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तृतीय शतक : उद्देशक-१०]
[३९१ होने से इसे 'शमिता' भी कहते हैं। शमिका के समान महत्वपूर्ण न होने से तथा साधारण कोपादि के प्रसंग पर कुपित हो जाने के कारण दूसरी परिषद् को 'चण्डा' कहते हैं। गम्भीर स्वभाव न होने से निष्प्रयोजन कोप उत्पन्न हो जाने के कारण तीसरी परिषद् का नाम 'जाता' है। इन्हीं तीनों परिषदों को क्रमशः आभ्यन्तरा, मध्यमा और बाह्या भी कहते हैं। जब इन्द्र को कोई प्रयोजन होता है, तब वह आदरपूर्वक आभ्यन्तर परिषद् बुलाता और उसके समक्ष अपना प्रयोजन प्रस्तुत करता है। मध्यम परिषद् बुलाने या न बुलाने पर भी आती है। इन्द्र, आभ्यन्तर परिषद् में विचारित बातें उसके समक्ष प्रकट कर निर्णय करता है। बाह्य परिषद बिना बुलाये आती है। इन्द्र उसके समक्ष स्वनिर्णीत कार्य प्रस्तुत करके उसे सम्पादित करने की आज्ञा देता है। असुरकुमारेन्द्र की परिषद् के समान ही शेष नौ निकायों की परिषदों के नाम और काम हैं। व्यन्तर देवों की तीन परिषद् हैं—इसा, तुडिया और दृढ़रथा। ज्योतिष्क देवों की तीन परिषदों के नाम तुम्बा, तुडिया और पर्वा। वैमानिक देवों की तीन परिषदें शमिका, चण्डा
और जाता। इसके अतिरिक्त भवनपति से लेकर अच्युत देवलोक तक के तीनों इन्द्रों की तीनों परिषदों के देव-देवियों की संख्या, उनकी स्थिति आदि का विस्तृत वर्णन जीवाभिगम सूत्र से जान लेना चाहिए।
॥ तृतीय शतक : दशम उद्देशक समाप्त॥
तृतीय शतक सम्पूर्ण
१. (क) जीवाभिगम. प्रतिपत्ति ३ उद्देशक २ पृ. १६४-१७४ तथा ३८८-३९०
(ख) भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक २०२