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________________ ३४६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६ प्र.] भगवन् ! क्या वायुकाय एक बड़ा स्त्रीरूप या पुरुषरूप, हस्तिरूप अथवा यानरूप, तथा युग्य (रिक्शा गाड़ी, तथा तांगा जैसी सवारी), गिल्ली (हाथी की अम्बाड़ी), थिल्ली (घोड़े का पलान), शिविका (डोली), स्यन्दमानिका (म्याना) इन सबके रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? [६ उ.] गौतम! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। (अर्थात् वायुकाय उपर्युक्त रूपों की विकुर्वणा नहीं कर सकता), किन्तु वायुकाय यदि विकुर्वणा करे तो एक बड़ी पताका के आकार के रूप की विकुर्वणा कर सकता है? ७. [१] पभू णं भंते! वाउकाए एगं महं पडागासंठियं रूवं विउव्वित्ता अणेगाई जोयणाई गमित्तए ? हंता, पभू। [७-१ प्र.] भगवन्! क्या वायुकाय एक बड़ी पताका के आकार (संस्थान) जेसे रूप की विकुर्वणा करके अनेक योजन तक गमन करने में समर्थ है ? [७-१ उ.] हां (गौतम! वायुकाय ऐसा करने में) समर्थ है ? [२] से भंते! किं आयड्डीए गच्छइ, परिड्डीए गच्छइ ? गोयमा! आतड्डीए गच्छइ, णो परिड्डीए गच्छइ। [७-२ प्र.] भगवन् ! क्या वह (वायुकाय) अपनी ही ऋद्धि से गति करता है अथवा पर की ऋद्धि से गति करता है ? [७-२ उ.] गौतम! वह अपनी ऋद्धि से गति करता है, पर की ऋद्धि से गति नहीं करता। [३] जहा आयड्डी एवं चेव आयकम्मुणा वि, आयप्पओगेण वि भाणियव्वं। [७-३] जैसे वायुकाय आत्मऋद्धि से गति करता है, वैसे वह आत्मकर्म से एवं आत्मप्रयोग से भी गति करता है, यह कहना चाहिए। [४] से भंते! किं ऊसिओदयं गच्छइ, पतोदयं गच्छइ ? गोयमा! ऊसिओदयं पि गच्छइ, पतोदयं पि गच्छइ । [७-४ प्र.] भगवन् ! क्या वह वायुकाय उच्छ्रितपताका (ऊँची-उठी हुई ध्वजा) के आकार से गति करता है, या पतित-(पड़ी हुई) पताका के आकार से गति करता है ? [७-४ उ.] गौतम! वह उच्छ्रितपताका और पतित-पताका, इन दोनों के आकार से गति करता [५] से भंते! किं एगओपडागं गच्छइ, दुहओपडागं गच्छइ ? गोयमा ! एगओपडागं गच्छइ, नो दुहओपडागं गच्छइ । [७-५ प्र.] भगवन्! क्या वायुकाय एक दिशा में एक पताका के समान रूप बना कर गति
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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