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________________ [ ३४५ तृतीय शतक : उद्देशक - ४] देखता है ? इत्यादि प्रश्न हैं। सभी के उत्तर में दो-दो पदार्थों के संयोगी चार-चार भंग का संयोजन कर लेना चाहिए । मूल आदि दस पदों के द्विकसंयोगी ४५ भंग मूल आदि १० पद इस प्रकार हैं—मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल), शाखा, प्रवाल (अंकुर), पत्र, पुष्प, फल और बीज। इन दस ही पदों के द्विकसंयोगी ४५ भंग इस प्रकार होते हैं—मूल के साथ शेष ९ का संयोजन करने से ९ भंग, फिर कन्द के साथ शेष (आगे के ) ८ का संयोजन करने से ८ भंग, फिर स्कन्ध के साथ आगे के त्वचा आदि ७ का संयोग करने से ७ भंग, त्वचा के साथ शाखादि ६ का संयोग करने से ६ भंग, शाखा के साथ प्रवाल आदि ५ का संयोग करने से ५ भंग, प्रवाल के साथ पुष्पादि ४ का संयोग करने ४ भंग, पत्र के साथ पुष्पादि तीन के संयोग से ३ भंग, पुष्प के साथ फलादि दो के संयोग से दो भंग और फल एवं बीज के सयोंग से १ भंग; यों कुल ४५ भंग हुए। इन ४५ ही भंगों का उत्तर चौभंगी के रूप में दिया गया है। भावितात्मा अनगार—संयम और तप से जिसकी आत्मा भावित ( वासित) है, प्रायः ऐसे अनगार को अवधिज्ञान अथवा लब्धियाँ प्राप्त होती हैं। 'जाणइ-पासइ' का रहस्य यहाँ प्रत्येक सूत्रपाठ के प्रश्न में दोनों क्रियाओं (जानता है, देखता है) का प्रयोग किया गया है, जबकि उत्तर में 'पासइ' (देखता है) क्रिया का ही प्रयोग है, इसका रहस्य यह है कि, पासइ पद का अर्थ यहाँ सामान्य निराकार ज्ञान (दर्शन) से है, और जाणइ का अर्थविशेष साकार ज्ञान से है । सामान्यतः 'जानना' दोनों में उपयोग रूप से समान है अत: उत्तर में दोनों का 'पास' क्रिया से ग्रहण कर लेना चाहिए । चभंगी क्यों ? — क्षयोपशम की विचित्रता के कारण अवधिज्ञान विचित्र प्रकार का होता है। अतः कोई अवधिज्ञानी सिर्फ विमान (यान) को और कोई सिर्फ देव को, कोई दोनों को देखता और कोई दोनों को नहीं जानता-देखता। इसी कारण सर्वत्र चौभंगी द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों का समाधान किया गया है। वायुकाय द्वारा वैक्रियकृत रूप परिणमन एवं गमन सम्बन्धी प्ररूपणा ६. पभू णं भंते! वाउकाए एगं महं इत्थिरूवं वा पुरिसरूवं वा हत्थिरूवं वा जाणरूवं वा एवं जुग्ग ४ - गिल्लि - थिल्लि' -सीय - संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए ? गोमा ! णो इट्ठे समट्ठे । वाउक्काए णं विकुव्वमाणे एगं महं पटागासंठियं रूवं विकुव्वइ । (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण युक्त), भा. १, पृ. १५९ (ख) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १८६ २. भगवतीसूत्र (टीकानुवाद सहित) (पं. बेचरदासजी, खण्ड २), पृ. ८६ ३. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १८६ ४. वर्तमान में सिंहल द्वीप (सिलोन- कोलम्बो ) में 'गोल' (गोल्ल) नामक एक तालुका (तहसील) है, जहाँ इस जुग्ग ( युग्य - रिक्शा गाड़ी) का ही विशेष प्रचलन है। सं. लाट देश प्रसिद्ध अश्व के पलान को अन्य प्रदेशों में 'थिल्लि' कहते हैं। १. ५. सं.
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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