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________________ ३४४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नहीं देखता; इत्यादि चार भंग पूर्ववत् कहने चाहिए। ४. [१] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं अंतो पासइ, बाहिं पासइ ? चउभंगो। [४-१ प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के आन्तरिक भाग को (भी) देखता है अथवा (केवल) बाह्य भाग को देखता है ? [४-१ उ.] (हे गौतम!) यहाँ भी घूर्वोक्त प्रकार से चार भंग कहने चाहिए। [२] एवं किं मूलं पासइ, कंदं पा० ? चउभंगो। मूलं पा० खंधं पा० ? चउभंगो। [४-२ प्र.] इसी तरह पृच्छा की क्या वह (केवल) मूल को देखता है, (अथवा) कन्द को (भी) देखता है? तथा क्या वह (केवल) मूल को देखता है, अथवा स्कन्ध को (भी) देखता है? [४-२ उ.] हे गौतम! (दोनों पृच्छाओं के उत्तर में चार-चार भंग पूर्ववत् कहने चाहिए। [३] एवं मूलेणं बीजं संजोएयव्वं। एवं कंदेण वि समं संजोएयव्वं जाव बीयं। एवं जाव पुप्फेण समं बीयं संजोएयव्वं। [४-३] इसी प्रकार मूल के साथ बीज का संयोजन करके (पूर्ववत् पृच्छा करके उत्तर के रूप में) चार भंग कहने चाहिए। तथा कन्द के साथ यावत् बीज तक (के संयोगी चतुर्भंग) का संयोजन कर लेना चाहिए। इसी तरह यावत् पुष्प के साथ बीज (के संयोगी-असंयोगी चतुर्भंग) का संयोजन कर लेना चाहिए। ५. अणगारे णं भंते! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पा० बीयं पा०? चउभंगो। [५ प्र.] भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार वृक्ष के (केवल) फल को देखता है, अथवा बीज को (भी) देखता है ? [५ उ.] गौतम! (यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से) चार भंग कहने चाहिए। विवेचन भावितात्मा अनगार की जानने-देखने की शक्ति का प्ररूपण—प्रस्तुत ५ सूत्रों (१ से ५ सू. तक) में भावितात्मा अनगार की देवादि तथा वृक्षादि विविध पदार्थों को जानने-देखने की शक्ति का चतुर्भंगी के रूप में निरूपण किया है। प्रश्नों का क्रम इस प्रकार है-(१) वैक्रियकृत एवं यानरूप से जाते हुए देव को देखता है ? (२) वैक्रियकृत एवं यानरूप से जाती हुई देवी को देखता है ? (३) वैक्रियकृत एवं यानरूप से जाते हुए देवीसहित देव को देखता है ? (४) वृक्ष के आन्तरिक भाग को देता है या बाह्य को भी ? (५) मूल को देखता है या कन्द को भी, (६) मूल को देखता है या स्कन्ध को भी ? (७) इसी तरह क्रमशः मूल के साथ बीज तक का एवं यावत् कन्द के साथ बीज तक का तथा यावत् पुष्प के साथ बीज को
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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