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चउत्थो उद्देसओ : जाणं
चतुर्थ उद्देशक : यान
भवितात्मा अनगार की, वैक्रियकृत देवी-देव- यानादि-गमन तथा वृक्ष-मूलादि को जाननेदेखने की शक्ति का प्ररूपण
१. अणगारे णं भंते! भावियप्पा देवं वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ ?
गोयमा! अत्थेगइए देवं पासइ, णो जाणं पासइ १; अत्थेगइए जाणं पास, नो देवं पासइ २; अत्थेगइए देवं पि पासइ, जाणं पि पासइ ३; अत्थेगइए तो देवं पासइ, नो जाणं पासइ
४।
[१ प्र.] भगवन्! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से समवहत हुए और यानरूप से जाते हुए देव को जानता देखता है ?
[१ उ.] गौतम! (१) कोई (भावितात्मा अनगार) देव को तो देखता है, किन्तु यान को नहीं देखता; (२) कोई यान को देखता है, किन्तु देव को नहीं देखता; (३) कोई देव को भी देखता है और याने को भी देखता है; (४) कोई न देव को देखता है और न यान को देखता है।
२. अणगारे णं भंते! भावियप्पा देविं वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणिं जाणइ पासइ ?
गोयमा ! एवं चेव ।
[२ प्र.] भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से समवहत हुई और यानरूप से जाती हुई देवी को जानता - देखता है ?
[२ उ.] गौतम! जैसा देव के विषय में कहा, वैसा ही देवी के विषय में भी जानना चाहिए। ३. अणगारे णं भंते! भावियप्पा देवं सदेवीयं वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ ?
गोयमा ! अत्थेगइए देवं सदेवीयं पासइ, नो जाणं पासइ । एएणं अभिलावेणं चत्तारि
भंगा ।
[३ प्र.] भगवन्! भावितात्मा अनगार, वैक्रिय समुद्घात से समवहत तथा यानरूप से जाते हुए, देवीसहित देव को जानता - देखता है ?
[३ उ.] गौतम! कोई (भावितात्मा - अनगार) देवीसहित देव को तो देखता है, किन्तु यान को