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तइओ उद्देसओ : 'किरिया' _ तृतीय उद्देशक : "क्रिया'
क्रियाएँ : प्रकार और तत्सम्बन्धित चर्चा
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे होत्था जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव अंतेवासी मंडियपुत्ते णामं अणगारे पगतिभद्दए जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी
[१] उस काल और उस समय में 'राजगृह' नामक नगर था; यावत् परिषद् (धर्मकथा सुन) वापस चली गई।
. उस काल और उस समय में भगवान् के अन्तेवासी (शिष्य-भगवान् महावीर स्वामी के छठे गणधर) प्रकृति (स्वभाव) से भद्र मण्डितपुत्र नामक अनगार यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले
२. कति णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ?
मंडियपुत्ता! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—काइया अहिगरणिया पाओसिया परियावणिया पाणातिवातकिरिया।
[२ प्र.] भगवन् ! क्रियाएँ कितनी कही गई हैं ? __ [२ उ.] हे मण्डितपुत्र! क्रियाएँ पांच कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं—कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी क्रिया।
३. काइया णं भंते! किरिया कतिविहा पण्णत्ता ?
मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—अणुवरयकायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य।
[३ प्र.] भगवन् ! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ?
[३ उ.] मण्डितपुत्र! कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार—अनुपरतकायक्रिया और दुष्प्रयुक्तकाय-क्रिया।
४. अधिगरणिया णं भंते! किरिया कतिविहा पण्णत्ता ?
मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—संजोयणाहिगरणाकिरिया य निव्वत्तणाहिगरणकिरिया य।
[४ प्र.] भगवन् ! आधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ?