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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' ऐसा कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करने लगे।
चमरेन्द्र-सम्बन्धी वृत्तान्तपूर्ण हुआ।
विवेचन असुरकुमार देवों के सौधर्मकल्पपर्यन्त गमन का प्रयोजन प्रस्तुत सूत्र में असुरकुमार देवों द्वारा ऊपर सौधर्म देवलोक तक जाने का कारण प्रस्तुत किया गया है। वे शक्रेन्द्र की देवऋद्धि आदि से चकित होकर उसकी देवऋद्धि आदि देखने-जानने और अपनी देवऋद्धि दिखानेबताने हेतु सौधर्मकल्पपर्यन्त जाते हैं।
तब और अब के ऊर्ध्वगमन और गमनकर्ता में अन्तर-पूर्वप्रकरण में असुरकुमार देवों के ऊर्ध्वगमन का कारण भव-प्रत्ययिक वैरानुबन्ध (जन्मजात शत्रुता) बताया गया था; जबकि इस प्रकरण में ऊर्ध्वगमन का कारण बताया गया है—शक्रेन्द्र की देवऋद्धि आदि को देखना-जानना तथा अपनी दिव्यऋद्धि आदि को दिखाना-बताना। इसके अतिरिक्त ऊर्ध्वगमनकर्ता भी यहाँ दो प्रकार के असुरकुमार देव बताये गए हैं—या तो वे अधुना (तत्काल) उत्पन्न होते हैं, या वे देवभव से च्यवन करने की तैयारी वाले होते हैं।
॥ तृतीयशतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त॥
१. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १८१
(ख) भगवतीसूत्र विवेचनयुक्त (पं. घेवरचन्दजी), भा. २, पृ.६५०