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तृतीय शतक : उद्देशक-२]
[३२९ ___ (४) चमरेन्द्र की दिव्यऋद्धि आदि से सम्बन्धित कथन का भगवान द्वारा उपसंहार; अन्त में, मोक्षप्राप्तिरूप उज्ज्वल भविष्यकथन। असुरकुमारों के सौधर्मकल्प पर्यन्त गमन का कारणान्तर निरूपण
४५. कि पत्तियं णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?
गोयमा! तेसि णं देवाणं अहुणोववन्नगाण वा चरिमभवत्थाण वा इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जति–अहो! णं अम्हेहिं दिव्वा देविड्डी लद्धा पत्ता जाव अभिसमन्नागया। जारिसिया णं अम्हेहिं दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया तारिसिया णं सक्केणं देविदेणं देवरण्णा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया, जारिसिया णं सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा जाव अभिसमन्नागया तारिसिया णं अम्हेहिं वि जाव अभिसमन्नागया। तं गच्छामो णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउब्भवामो, पासामो ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविढेि जाव अभिसमन्नागयं। पासतु ताव अम्ह वि सक्के देविंदे देवराया दिव्वं देविढेि जाव अभिसमण्णागयं, तं जाणामो ताव सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविढेि जाव अभिसमन्नागयं, जाणउ ताव अम्ह वि सक्के देविंदे देवराया दिव्वं देविड्ढेि जाव अभिसमण्णागयं। एवं खलु गोयमा! असुरकुमारा देवा उड्डूं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति०।
॥ चमरो समत्तो॥ · ॥ तइए सए : बिइओ उद्देसओ समत्तो॥ [४५ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर किस कारण से जाते हैं ?
[४५ उ.] गौतम! (देवलोक में) अधुनोत्पन्न (तत्काल उत्पन्न) तथा चरमभवस्थ (च्यवन के लिए तैयार) उन देवों को इस प्रकार का, इस रूप का आध्यात्मिक (आन्तरिक अध्यवसाय) यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न होता है—अहो! हमने दिव्य देवऋद्धि यावत् उपलब्ध की है, प्राप्त की है, अभिसमन्वागत की है। जैसी दिव्य देवऋद्धि हमने यावत् उपलब्ध की है, यावत् अभिसमन्वागत की है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि यावत् देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध की है यावत् अभिसमन्वागत की है, (इसी प्रकार) जैसी दिव्य देवऋद्धि यावत् देवेन्द्र देवराज शक्र ने उपलब्ध की है यावत् अभिसमन्वागत की है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि यावत् हमने भी उपलब्ध यावत् अभिसमन्वागत की है। अतः हम जाएँ और देवेन्द्र देवराज शक्र के निकट (सम्मुख) प्रकट हों एवं देवेन्द्र देवराज शक्र द्वारा प्राप्त यावत् अभिसमन्वागत उस दिव्य देवऋद्धि यावत् दिव्य देवप्रभाव को देखें तथा हमारे द्वारा लब्ध, प्राप्त एवं अभिसमन्वागत उस दिव्य देवऋद्धि यावत् दिव्य देवप्रभाव को देवेन्द्र देवराज शक्र देखें। देवेन्द्र देवराज शक्र द्वारा लब्ध यावत् अभिसमन्वागत दिव्य देवऋद्धि यावत् दिव्य देवप्रभाव को हम जानें और हमारे द्वारा उपलब्ध यावत् अभिसमन्वागत उस दिव्य देवऋद्धि यावत् देवप्रभाव को देवेन्द्र देवराज शक्र जानें। हे गौतम! इस कारण (प्रयोजन) से असुरकुमार देव यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) (पं.बेचरदासजी) भा.१, पृ.१५३-१५४