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निष्कर्ष ३४९, चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों की लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा ३४९, एक निश्चित सिद्धान्त ३५०, तीन सूत्र क्यों? ३५०, अन्तिम समय की लेश्या कौन-सी? ३५०, लेश्या और इसके द्रव्य ३५१, भावितात्मा अनगार द्वारा अशक्य एवं शक्य विकुर्वणा शक्ति ३५१, बाह्य पुद्गलों का ग्रहण आवश्यक क्यों? ३५२, विकुर्वणा से मायी की विराधना और अमायी की आराधना ३५३, मायी द्वारा विक्रिया ३५४, अमायी विक्रिया नहीं करता ३५४।
पंचम उद्देशक-'स्त्री' अथवा 'अनगार विकुर्वणा'
भावितात्मा अनगार के द्वारा स्त्री आदि के रूपों की विकुर्वणा ३५८, कठिन शब्दों की व्याख्या ३५९, भावितात्मा अनगार द्वारा अश्वादि रूपों के अभियोग-समबन्धी प्ररूपणा ३५९, अभियोग और वैक्रिय में अन्तर ३६१, मायी द्वारा विकुर्वणा और अमायी द्वारा अविकुर्वणा का फल ३६१, विकुर्वणा और अभियोग दोनों के प्रयोक्ता मायी ३६१, आभियोगिक अनगार का लक्षण ३६२, पंचम उद्देशक की संग्रहणी गाथाएँ ३६२। छठा उद्देशक-नगर अथवा अनगार वीर्यलब्धि
• वीर्यलब्धि आदि के प्रभाव से मिथ्यादृष्टि अनगार का नगरान्तर के रूपों को जानने-देखने की प्ररूपणा ३६५, मायी मिथ्यादृष्टि अनगार द्वारा विकुर्वणा ओर उसका दर्शन ३६५, निष्कर्ष ३६५, मायी, मिथ्यादृष्टि, भावितात्मा अनगार की व्याख्या ३६५, लब्धित्रय का स्वरूप ३६५, कठिन शब्दों की व्याख्या ३६६, अमायी सम्यग्दृष्टि अनगार द्वारा विकुर्वणा और उसका दर्शन ३६६, निष्कर्ष ३६८, भावितात्मा अनगार द्वारा ग्रामादि के रूपों का विकुर्वणसामर्थ्य ३६८, चमरेन्द्र आदि इन्द्रों के आत्मरक्षक देवों की संख्या का निरूपण ३६९, आत्मरक्षक देव और उनकी संख्या ३७०। सप्तम उद्देशक-लोकपाल
शक्रेन्द्र के लोकपाल और उनके विमानों के नाम ३७१, सोम लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन ३७१, कठिन शब्दों के अर्थ ३७४, सूर्य और चन्द्र की स्थिति ३७४, यम लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन ३७५, यमकायिक आदि की व्याख्या ३७७, अपत्य रूप से अभिमत पन्द्रह देवों की व्याख्या ३७७, वरुण लोकपाल के विमान-स्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन ३७८.वैश्रमण लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन ३७९, कठिन शब्दों की व्याख्या ३७९।
अष्टम उद्देशक-अधिपति
भवनपति देवों के अधिपति के विषय में प्ररूपण ३८३, नागकुमार देवों के अधिपति के विषय में पृच्छा ३८३, सुपर्णकुमार से स्तनित कुमार देवों के अधिपतियों के विषय में आलापक ३८४, आधिपत्य में तारतम्य ३८४, दक्षिण भवनपति देवों के इन्द्र और उनके प्रथम लोकपाल ३८४, सोमादि लोकपाल : वैदिक ग्रन्थों में ३८५, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक देवों पर आधिपत्य की प्ररूपणा ३८५, वाणव्यन्तर देव और उनके अधिपति दोदो इन्द्र ३८६, ज्योतिष्क देवों के इन्द्र ३८७, वैमानिक देवों के अधिपति-इन्द्र एवं लोकपाल ३८७।
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