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________________ २९४, कठिन शब्दों के विशिष्ट अर्थ २९५, ईशानेन्द्र की स्थिति तथा परम्परा से मुक्त हो जाने की प्ररूपणा २९५, बालतपस्वी को इन्द्रपद प्राप्ति के बाद भविष्य में मोक्ष कैसे? २९६, शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों की ऊँचाईनीचाई में अन्तर २९६, उच्चता-नीचता या उन्नतता-निम्नता किस अपेक्षा से? २९७, दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार तथा विवाद में सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता २९७, कठिन शब्दों के विशेषार्थ २९९, सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता आदि तथा स्थिति एवं सिद्धि के विषय में प्रश्नोत्तर ३००, कठिन शब्दों के अर्थ ३०१, तृतीय शतक के प्रथम उद्देशक की संग्रहणी गाथाएँ ३०१। द्वितीय उद्देशक-चमर द्वितीय उद्देशक का उपोद्घात ३०३, असुरकुमार देवों का स्थान ३०३, असुरकुमार देवों का आवासस्थान ३०४, असुरकुमार देवों का यथार्थ आवासस्थान ३०४, असुरकुमार देवों के अधो-तिर्यक्-ऊर्ध्वगमन से सम्बन्धित प्ररूपणा ३०४, असुर' शब्द पर भारतीय धर्मो की दृष्टि से चर्चा ३०९, कठिन शब्दों की व्याख्या ३०९, चमरेन्द्र के पूर्वभव से लेकर इन्द्रत्व प्राप्ति तक का वृत्तान्त ३१३, 'दाणामा पव्वज्जा' का आशय ३१३, पूरण तापस और पूरण काश्यप ३१३, सुंसुमारपुर-सुंसुमारगिरि ३१४, कठिन शब्दों की व्याख्या ३१४, चमरेन्द्र द्वारा सौधर्म कल्प में उत्पात एवं भगवदाश्रय से शक्रेन्द्रकृत वज्रपात से मुक्ति ३२१, शक्रेन्द्र के विभिन्न विशेषणों की व्याख्या ३२१, कठिन शब्दों की व्याख्या ३२२, फेंके हुए पुद्गल को पकड़ने की देवशक्ति ओर गमन-सामर्थ्य में अन्तर ३२२, इन्द्रद्वय एवं वज्र की ऊर्ध्वादि गति का क्षेत्रकाल की दृष्टि से अल्पबहुत्व ३२४, संख्येय, तुल्य और विशेषाधिक का स्पष्टीकरण ३२६, वज्रभयमुक्त चिन्तित चमरेन्द्र द्वारा भगवन् सेवा में जाकर कृतज्ञता प्रदर्शन, क्षमायाचन और नाट्यप्रदर्शन ३२८, इन्द्रादि के गमन का यन्त्र ३२९, असुरकुमारों के सौधर्मकल्पपर्यन्त गमन का कारणान्तर निरूपण ३२९, तब ओर अब के ऊर्ध्वगमनकर्ता में अन्तर ३३०। तृतीय उद्देशक-क्रिया क्रियाएँ : प्रकार और तत्सम्बन्धित चर्चा ३३१, क्रिया ३३३, पाँच क्रियाओं का अर्थ ३३३, क्रियाओं के प्रकार की व्याख्या ३३३, क्रिया और वेदना में क्रिया प्रथम क्यों? ३३४, श्रमण निर्ग्रन्थ की क्रिया : प्रमाद और योग से ३३४, सक्रिय-अक्रिय जीवों की अन्तक्रिया के नास्तित्व-अस्तित्व का दृष्टान्तपूर्वक निरूपण ३३४, तीन दृष्टान्त ३३७-३८, विविध क्रियाओं का अर्थ ३३८, संरम्भ समारम्भ और आरम्भ का क्रम ३३८, 'दुक्खावणताए' आदि पदों की व्याख्या ३३९, प्रमत्तसंयमी और अप्रमत्तसंयमी के प्रमत्तसंयम और अप्रमत्तसंयम के सर्वकाल का प्ररूपण ३४०, प्रमत्तसंयम का काल एक समय कैसे? ३४१, अप्रमत्तसंयम का काल एक अन्तर्मुहूर्त क्यों? ३४१, चतुर्दशी आदि तिथियों को लवणसमुद्रीय वृद्धि-हानि का प्ररूपण ३४१, वृद्धि हानि का कारण ३४२। चतुर्थ उद्देशक-यान भावितात्मा अनगार की वैक्रियकृत देवी-देव-यानादि गमन तथा वृक्ष-मूलादि को जानने देखने की शक्ति का प्ररूपण ३४३, प्रश्नों का क्रम ३४४, मूल आदि दस पदों के द्विकसंयोगी ४५ भंग ३४५, भावितात्मा अनगार ३४५, 'जाणइ-पासइ' का रहस्य ३४५, चौभंगी क्यों? ३४५, वायुकाय द्वारा वैक्रियकृत रूप-परिणमन एवं गमन सम्बन्धी प्ररूपणा ३४५, कठिन शब्दों की व्याख्या ३४७, बलाहक के रूप् परिणमन एवं गमन की प्ररूपणा ३४७, [३३]
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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