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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तुल्य हैं और सबसे कम हैं । शक्रेन्द्र का नीचे जाने का काल और वज्र का ऊपर जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और (पूर्वोक्त काल से) संख्येयगुणा अधिक है। (इसी तरह) चमरेन्द्र का ऊपर जाने का काल और वज्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और (पूर्वोक्त काल से) विशेषाधिक हैं।
विवेचन–इन्द्रद्वय एवं वज्र की ऊर्ध्वादिगति का क्षेत्र-काल की दृष्टि से अल्पबहुत्व प्रस्तुत ७ सूत्रों (सू. ३५ से ४१ तक) में से प्रथम तीन सूत्रों में इन्द्रादि के ऊपर और नीचे गमन के क्षेत्रविषयक अल्पत्व, बहुत्व, तुल्यत्व और विशेषाधिकत्व का, तथा इनसे आगे के तीन सूत्रों में इन्द्रादि के ऊपर-नीचे गमन के कालविषयकं अल्पत्व, बहुत्व, तुल्यत्व और विशेषाधिकत्व का पृथक्पृथक् एवं इन्द्रद्वय एवं वज्र इन तीनों के नीचे और ऊपर जाने के कालों में से एक काल से दूसरे के काल के विशेषाधिकत्व, अल्पत्व एवं बहुत्व का सूक्ष्मता से निरूपण किया गया है।
संख्येय, तुल्य और विशेषाधिक का स्पष्टीकरण शक्रेन्द्र के नीचे जाने का और ऊपर जाने का क्षेत्र-काल विषयक स्पष्टीकरण इस प्रकार है—शक्रेन्द्र जितना नीचा क्षेत्र दो समय में जाता है, उतना ही ऊँचा क्षेत्र एक समय में जाता है। अर्थात् नीचे के क्षेत्र की अपेक्षा ऊपर का क्षेत्र दुगना है। चूर्णिकार ने स्पष्ट किया है कि शक्रेन्द्र एक समय में नीचे एक योजन, तिरछा डेढ योजन और ऊपर दो योजन जाता है।
इसी प्रकार शक्रेन्द्र की ऊर्ध्वगति और चमरेन्द्र की अधोगति बराबर बतलाई गई है, उसका तात्पर्य यह है कि शक्रेन्द्र एक समय में दो योजन ऊपर जाता है तो चमरेन्द्र भी एक समय में दो योजन नीचे जाता है। किन्तु शक्रेन्द्र, चमरेन्द्र और वज्र के केवल ऊर्ध्वगति क्षेत्र-काल में तारतम्य है, वह इस प्रकार समझना चाहिए-शक्रेन्द्र एक समय में जितना क्षेत्र ऊपर जाता है, उतना क्षेत्र ऊपर जाने में वज्र को दो समय और चमरेन्द्र को तीन समय लगता है। अर्थात् —शक्रेन्द्र का जितना ऊर्ध्वगमन क्षेत्र है, उसका त्रिभाग जितना ऊर्ध्वगमन क्षेत्र चमरेन्द्र का है। इसीलिए नियत ऊर्ध्व-गमनक्षेत्र विभाग न्यून तीन गाऊ बतलाया गया है।
___वज्र की नीचे जाने में गति मन्द होती है, तिरछे जाने में शीघ्रतर और ऊपर जाने में शीघ्रतम होती है। इसलिए वज्र का अधोगमनक्षेत्र त्रिभागन्यून योजन, तिर्यग्गमन क्षेत्र विशेषाधिक दो भाग त्रिभागसहित तीन गाऊ और ऊर्ध्वगमनक्षेत्र विशेषाधिक दो भाग तिर्यक्क्षेत्रकथित विशेषाधिक दो भाग से कुछ विशेषाधिक होता है।
- चमरेन्द्र एक समय में जितना नीचे जाता है, उतना ही नीचा जाने में शक्रेन्द्र को दो समय और वज्र को तीन समय लगते हैं। इस कथनानुसार शक्रेन्द्र के अधोगमन की अपेक्षा वज्र का अधोगमन त्रिभागन्यून है। शक्रेन्द्र का अधोगमन का समय और वज्र का ऊर्ध्वगमन का समय दोनों समान कहे गये हैं, इसका अर्थ है—शक्रेन्द्र एक समय में नीचे एक योजन जाता है, तथैव वज्र एक समय में ऊपर एक योजन जाता है।
१. (क) एगेणं समएणं उवयइ अहे णं जोयणं, एगेणेव समएणं तिरियं दिवड्ढं गच्छइ, उड्ढं दो जोयणाणि सक्को।
-चूर्णिकार, भगवती. अ. वृत्ति, पृ. १७८ (ख) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति पत्रांक १७८-१७९