SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२] [३२५ तिरछा, उससे संख्येय भाग अधिक (क्षेत्र) और नीचे उससे भी संख्येय भाग अधिक जाता है। ३७. वज्जं जहा सक्कस्स देविंदस्स तहेव, नवरं विसेसाहियं कायव्वं। [३७] वज्र-सम्बन्धी गमन का विषय (क्षेत्र), जैसे देवन्द्र शक्र का कहा है, उसी तरह जानना चाहिए। परन्तु विशेषता यह है कि गति का विषय (क्षेत्र) विशेषाधिक कहना चाहिए। ३८. सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कतरे कतरेहिंतो अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? गोयमा! सव्वत्थोवे सक्कस्स देविंदस्स देवरणो उप्पयणकाले, ओवयणकाले संखेज्जगुणे।। [३८ प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का नीचे जाने का (अवपतन-) काल और ऊपर जाने का (उत्पतन-) काल, इन दोनों कालों में कौन-सा काल. किस काल से अल्प है, बहत है, तल्य है अथवा विशेषाधिक है ? [३८ उ.] गौतम! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने का काल सबसे थोड़ा है, और नीचे जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है। ३९. चमरस्स वि जहा सक्कस्स, णवरं सव्वत्थोवे ओवयणकाले, उप्पयणकाले संखेज्जगुणे। [३९] चमरेन्द्र का गमनविषयक कथन भी शक्रेन्द्र के समान ही जानना चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल सबसे थोड़ा है, ऊपर जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है। ४०. वजस्स पुच्छा। गोयमा! सव्वत्थोवे उप्पयणकाले, ओवयणकाले विसेसाहिए। [४०] वज्र (के गमन के विषय में) पृच्छा की (तो भगवान् ने कहा-) गौतम! वज्र का ऊपर जाने का काल सबसे थोड़ा है, नीचे जाने का काल उससे विशेषाधिक है। ४१. एयस्स णं भंते! वज्जस्स, वजाहिवतिस्स, चमरस्स य असुरिंदस्स असुररणो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहित्तो अप्पे वा ४? गोयमा! सक्कस्स य उप्पयणकाले चमरस्स य ओवयणकाले, एते णं बिण्णि वि तुल्ला सव्वत्थोवा। सक्कस्स य पणकाले वज्जस्स य उप्पयणकाले, एस णं दोण्ह वि तुल्ले संखेज्जगुणे। चमरस्स य उप्पयणकाले वज्जस्स य ओवयणकाले एस णं दोण्ण वि तुल्ले विसेसाहिए। [४१ प्र.] भगवन् ! यह वज्र, वज्राधिपति–इन्द्र, और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन सब का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल; इन दोनों कालों में से कौन-सा काल किससे अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [४१ उ.] गौतम! शक्रेन्द्र का ऊपर जाने का काल और चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy