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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
जोर से चिल्लाकर उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहने लगे—'स्वयमेव तापस का वेष पहन (ग्रहण ) कर 'प्राणामा' प्रव्रज्या अंगीकार करने वाला यह तामली बालतपस्वी हमारे सामने क्या है ? तथा ईशानकल्प में उत्पन्न हुआ देवेन्द्र देवराज ईशान भी हमारे सामने कौन होता है ?' यों कहकर वे उस ताली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, (अवहेलना ), निन्दा करते हैं उसे कोसते (खिंसा करते ) हैं, उसकी गर्हा करते हैं, उसकी अवमानना, तर्जना और ताड़ना करते हैं (उसे मारते-पीटते हैं) । उसकी कदर्थना (विडम्बना) और भर्त्सना करते हैं, ( उसकी बहुत बुरी हालत करते हैं, उसे उठा-उठाकर खूब पटकते हैं।) अपनी इच्छानुसार उसे इधर-उधर घसीटते ( खींचते हैं। इस प्रकार उस शव की हीलना यावत् मनमानी खींचतान करके फिर उसे एकान्त स्थान में डाल देते हैं । फिर वे जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापस लौट गए।
विवेचन —— बलिचंचावासी असुरों द्वारा तामली तापस के शव की विडम्बना — प्रस्तुत सूत्र में बालतपस्वी तामली तापस का अनशनपूर्वक मरण हो जाने पर ईशान देवलोक के इन्द्र के रूप में उत्पन्न होने पर क्रुद्ध बलिचंचावासी असुरों द्वारा उसके मृतशरीर की की गई विडम्बना का वर्णन है । क्रोध में असुरों को कुछ भी भान न रहा कि इसकी प्रतिक्रिया क्या होगी ?
प्रकुपित ईशानेन्द्र द्वारा भस्मीभूत बलिचंचा देख, भयभीत असुरों द्वार अपराधक्षमायाचना
४९. तए णं ईसाणकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलिज्जमाणं निंदिज्जमाणं जाव आकड्ढविकड्डि कीरमाणं पासंति, २ आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाणे देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छंति, २ करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, २ एवं वदासी—— एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाप्पिए कालगए जाणित्ता ईसाणे य कप्पे इंदत्ताए उववन्ने पासेत्ता आसुरुत्ता जाव एगंते एडेंति, २ जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ।
[४७] तत्पश्चात् ईशानकल्पवासी बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों ने (इस प्रकार) देखा कि बलिचंचा- राजधानी - निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, निन्दा और आक्रोशना की जा रही है, यावत् उस शव को मनचाहे ढंग से इधरउधर घसीटा या खींचा जा रहा है। अतः इस प्रकार ( तामली तापस के मृत शरीर की दुर्दश होती ) देखकर वे वैमानिक देव-देवीगण शीघ्र ही क्रोध से भड़क उठे यावत् क्रोधानल से तिलमिलाते (दांत पीसते) हुए, जहाँ देवेन्द्र देवराज ईशान था, वहाँ पहुँचे। ईशानेन्द्र के पास पहुँचकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके 'जय हो, विजय हो' इत्यादि शब्दों से उस (तामली के जीव ईशानेन्द्र ) को बधाया। फिर वे इस प्रकार बोले—'हे देवानुप्रिय ! बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत से असुरकुमार देव और देवीगण आप देवानुप्रिय को कालधर्म प्राप्त हुआ एवं ईशानकल्प में इन्द्ररूप में उत्पन्न हुआ देखकर अत्यन्त कोपायमान हुए यावत् आपके मृतशरीर को उन्होंने मनचाहा आढ़ा- टेढ़ा खींच - घसीटकर एकान्त में डाल दिया। तत्पश्चात् वे जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए। '