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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [२९१ विवेचन तामली बालतपस्वी की ईशानेन्द्र के रूप में उत्पत्ति—प्रस्तुत सूत्र में तामली तापस द्वारा स्वीकृत संलेखना एवं अनशन पूर्ण होने की तथा आयुष्य पूर्ण होने की अवधि बता कर ईशान देवलोक में ईशान-देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न होने का वर्णन है। तामली तापस की कठोर बाल-तपस्या एवं संलेखनापूर्वक अनशन का सुफल—यहाँ शास्त्रकार ने तामली तापस की साधना के फलस्वरूप उपार्जित पुण्य का फल बताकर यह ध्वनित कर दिया है कि इतना कठोर तपश्चरण अज्ञानपूर्वक होने से कर्मक्षय का कारण न बनकर शुभकर्मोपार्जन का कारण बना। देवों में पाँच ही पर्याप्तियों का उल्लेख इसलिए किया गया है, कि देवों के भाषा और मनःपर्याप्ति एक साथ सम्मिलित बनती है। बलिचंचावासी असुरों द्वारा तामली तापस के शव की विडम्बना ४६. तए णं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सि कालगयं जाणित्ता ईसाणे य कप्पे देविंदत्ताए उववन्नं पासित्ता आसुरुत्ता कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा बलिचंचाए रायहाणीए मझमज्झेणं निग्गच्छंति, २ ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती नयरी जेणेव तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरए तेणेव उवागच्छंति २ वामे पाए सुंबेणं बंधंति, २ तिक्खुत्तो मुहे उठुहंति, २ तामलित्तीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसुआकड्ढविकढिं करेमाणा महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वदासि—'केस णं भो! से तामली बालतवस्सी सयंगहियलिंगे पाणामाए पव्वजाए पव्वइए! केस णं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंदे देवराया' इति कटु तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलंति निंदंति खिंसंति गरिहंति अवमन्नंति तज्जति तालेंति परिवहति पव्वहेंति आकड्ढविकड्ढेि करेंति, हीलेत्ता जाव आकड्ढविकढेि करेत्ता एगंते एडेंति, २ जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिंपडिगया। [४६] उस समय बलिचंचा-राजधानी के निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने जब यह जाना कि तामली बालतपस्वी कालधर्म को प्राप्त हो गया है और ईशानकल्प (देवलोक) में वहाँ के देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हआ है, तो यह जानकर वे एकदम क्रोध से मूढमति हो गए, अथवा शीघ्र क्रोध से भड़क उठे, वे अत्यन्त कुपित हो गए, उनके चेहरे क्रोध से भयंकर उग्र हो गए, वे क्रोध की आग से तिलमिला उठे और तत्काल वे सब बलिचंचा राजधानी के बीचोंबीच होकर निकले, यावत् उत्कृष्ट देवगति से इस जम्बूद्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की ताम्रलिप्ती नगरी के बाहर, जहाँ तामली बालतपस्वी का शव (मृतशरीर) (पड़ा) था वहाँ आए। उन्होंने (तामली बालतपस्वी के मृत शरीर के) बाएँ पैर को रस्सी से बांधा, फिर तीन बार उसके मुख में थूका। तत्पश्चात् ताम्रलिप्ती नगरी के शृंगाटकों-त्रिकोण मार्गों (तिराहों) में, चौकों में, प्रांगण में, चतुर्मुख मार्ग में तथा महामार्गों में; अर्थात् ताम्रलिप्ती नगरी के सभी प्रकार के मार्गों में उसके शव (मृतशरीर) को घसीटा; अथवा इधर-उधर खींचतान की और जोर१. भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भाग २, पृ. ५८७
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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