________________
तृतीय शतक : उद्देशक - १]
[ २८९
बलिचंचा में उत्पन्न होकर स्थिति ( इन्द्ररूप में निवास ) करने का संकल्प ( निश्चय) करें। तभी (बलिचंचा राजधानी के अधिपतिपदप्राप्ति का आपका विचार स्थिर हो जाएगा, तब ही) आप काल (मृत्यु) के अवसर पर मृत्यु प्राप्त करके बलिचंचा राजधानी में उत्पन्न होंगे। फिर आप हमारे इन्द्र बन जाऐंगे और हमारे साथ दिव्य कामभोगों को भोगते हुए विहरण करेंगे।
४२. तए णं से तामली बालतवस्सी तेहिं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहि य देवीहि य एवं वृत्ते समाणे एयमट्ठे नो आढाइ नो परियाणेइ, तुसिणी संचिट्ठ |
[४२] जब बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने उस तामली बालतपस्वी को इस (पूर्वोक्त) प्रकार से कहा तो उसने उनकी बात का आदर नहीं किया, स्वीकार भी नहीं किया, किन्तु मौन रहा ।
४३. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं मोरियपुत्ते दोच्चं पि तच्चं पि तिक्खुत्तो आदाहिणप्पदाहिणं करेंति, २ जाव अम्हं चणं देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी अणिंदा जाव ठितिपकप्पं पकरेह, जाव दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे जाव तुसिणीए संचिट्ठइ ।
[४३] तदनन्तर बलिचंचा- राजधानी - निवासी उन बहुत-से देवों और देवियों ने उस तामली बालतपस्वी की फिर दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा करके दूसरी बार, तीसरी बार पूर्वोक्त बात कही कि हे देवानुप्रिय ! हमारी बलिचंचा राजधानी इन्द्रविहीन और पुरोहितरहित है, यावत् आप उसके स्वामी बनकर वहाँ स्थिति करने का संकल्प करिये। उन असुरकुमार देव - देवियों द्वारा पूर्वोक्त बात दो-तीन बार यावत् दोहराई जाने पर भी तामली मौर्यपुत्र ने कुछ भी जवाब नहीं दिया यावत् वह मौन धारण करके बैठा रहा ।
४४. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुारा देवा य देवीओ य तामलिणा बालतवस्सिणा अणाढाइज्जमाणा अपरियाणिज्जमाणा जामेव दिसिं पादुब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ।
[४४] तत्पश्चात् अन्त में जब तामली बालतपस्वी के द्वारा बलिचंचा राजधानी - निवासी उन बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों का अनादर हुआ और उनकी बात नहीं मानी गई, तब वे (देव-देवीवृन्द) जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस चले गए ।
विवेचन बलिचंचानिवासी देवगण द्वारा इन्द्र बनने की विनति और तामली तापस द्वारा अस्वीकार—प्रस्तुत चार सूत्रों (४१ से ४४ सू० तक) में तामली तापस से सम्बन्धित चार वृत्तान्त प्रतिपादित किए गए हैं
(१) बलिचंचा राजधानी निवासी असुरकुमार देव-देवीगण द्वारा अनशनलीन तामली तापस को वहाँ के इन्द्रपद की प्राप्ति का संकल्प एवं निदान करने के लिए विनति करने का विचार ।
(२) तामली तापस की सेवा में पहुंचकर उससे बलिचंचा के इन्द्रपद प्राप्ति का संकल्प और निदान का साग्रह अनुरोध ।