SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय शतक १६५ द्वितीय शतक का परिचय द्वितीय शतक के दस उद्देशकों का नाम-निरूपण १६६ प्रथम उद्देशक-स्वासोच्छ्वास एकेन्द्रियादि जीवों में श्वासोच्छ्वास सम्बन्धी प्ररूपणा १६६, आणमंति पाणमंति उस्ससंति नीससंति १६८, एकेन्द्रिय जीवों के श्वासोच्छ्वास संबंधी शंका क्यों? १६८, श्वासोच्छ्वास योग्य पुद्गल १६८, व्याघातअव्याघात १६८, वायुकाय के श्वासोच्छ्वास पुनरुत्पत्ति, मरण एवं शरीररादि संबंधी प्रश्नोत्तर १६८, वायुकाय के श्वासोच्छवास-संबंधी शंका-समाधान १७०, दूसरी शंका १७०, वायुकाय आदि की कायस्थिति १७०, वायुकाय का मरण स्पृष्ट होकर ही १७०, मृतादी निर्ग्रन्थों के भवभ्रमण एवं भवान्तकरण के कारण १७०, 'मृतादी' शब्द का अर्थ १७३, 'णिरुद्धभवे' आदि शब्दों के अर्थ १७३, इत्थत्तं' शब्द का तात्पर्य १७३, पिंगल निर्ग्रन्थ के पाँच प्रश्नों से निरुत्तर स्कन्दक परिव्राजक १७३, स्कन्दक का भवगान् की सेवा में जाने का संकल्प और प्रस्थान १७६, गौतम स्वामी द्वारा स्कन्दक का स्वागत और वार्तालाप १७७, भगवान द्वारा स्कन्दक की मनोगत शंकाओं का समाधान १८०, भगवान् द्वारा किये गये समाधान का निष्कर्ष १८५, विशिष्ट शब्दों के अर्थ १८५-१८६, स्कन्दक द्वारा धर्मकथाश्रवण, प्रतिबोध, प्रव्रज्याग्रहण और निर्ग्रन्थधर्माचरण १८७, कठिन शब्दों की व्याख्या १८९, स्कन्दक द्वारा शास्त्राध्ययन भिक्षुप्रतिमाऽऽराघन और गुणरत्न आदि तपश्चरण १८९, स्कन्दक का चरित किस वाचना द्वारा अंकित किया गया? १९३, भिक्षुप्रतिमा की आराधना १९३, गुणरत्न (गुणरचन) संवत्सर तप १९५, उदार, विपुल, प्रदत्त, प्रगृहीत : तपोविशेषणों की व्याख्या १९५, स्कन्दक द्वारा संलेखना-भावना, अनशन-ग्रहण, समाधिमरण १९५, कुछ विशिष्ट शब्दों के अर्थ १९९, स्कन्दक की गति और मुक्ति के संबंध में भगवत-कथन १९९, विशिष्ट शब्दों की व्याख्या २००। द्वितीय उद्देशक-समुद्घात समुद्घात : प्रकार तथा तत्संबंधी विश्लेषण, २०१, समुद्घात २०१, आत्मा समुद्घात क्यों करता है? २०२, (१) वेदना समुद्घात २०२, (२) कषाय समुद्घात २०२, (३) मारणान्तिक समुद्घात २०२, (४) वैक्रिय समुद्घात २०२, (५) तैजस समुद्घात २०३, (६) आहारक समुद्घात २०३, (७) केवलिसमुद्घात २०३, समुद्घातयन्त्र २०४। तृतीय उद्देशक-पृथ्वी सप्त नरकपृथ्वियाँ तथा उनसे सम्बन्धित वर्णन २०५, सात पृथ्वियों की संख्या, बाहल्य आदि का वर्णन २०५। चतुर्थ उद्देशक-इन्द्रिय ___ इन्द्रियाँ और उनके संस्थानादि से संबंधित वर्णन २०७, संग्रहणी गाथा २०७, चौबीस द्वारों के माध्यम से इन्द्रियों की प्ररूपणा २०७। पंचम उद्देशक-निर्ग्रन्थ देव-परिचारणासम्बन्धी परमतनिराकरण-स्वमत-प्ररूपण २०९, देव की परिचारणा सम्बन्धी चर्चा २१०, [३०]
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy