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________________ और नौका के समान १२०, सूक्ष्म स्नेहकायपात सम्बन्धी प्ररूपणा ११९, 'सया समियं' का दूसरा सप्तम उद्देशक-नैरयिक अर्थ नारकादि चौबीस दण्डकों के उत्पाद, उद्वर्तन और आहार संबंधी प्ररूपणा १२२, प्रस्तुत प्रश्नोत्तर के सोलह दण्डक १२४, देश ओर सर्व का तात्पर्य १२४, नैरयिक की नैरयिकों में उत्पत्ति कैसे ? १२४, आहार विषयक समाधान का आशय १२४, देश और अर्द्ध में अन्तर १२४, जीवों की विग्रह - अविग्रह गति संबंधी प्रश्नोत्तर १२५, विग्रहगति - अविग्रहगति की व्याख्या १२६, देव का च्यवनान्तर आयुष्य प्रतिसंवेदन - निर्णय १२६, गर्भगत जीव संबंधी विचार १२७, द्रव्येन्द्रिय-भावेन्द्रिय १३२, गर्भगत जीव के आहारादि १३२, गर्भगत जीव के अंगादि १३३, गर्भगत जीव के नरक या देवलोक में जाने का कारण १३३, गर्भस्थ जीव की स्थिति १३३, बालक का भविष्य : पूर्वजन्मकृत कर्म पर निर्भर १३३ । १२१ । अष्टम उद्देशक- बाल एकान्त बाल, पण्डित आदि के आयुष्यबंध का विचार १३४, बाल आदि के लक्षण १३६, एकान्त बाल मनुष्य के चारों गतियों का बंध क्यों १३६, एकान्त पंडित की दो गतियाँ १३६, मृगघातकादि को लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा १३६, षट्मास की अवधि क्यों ? १४०, आसन्नवधक १४०, पंचक्रियाएँ १४०, अनेक बालों में समान दो योद्धाओं में जय-पराजय का कारण १४०, वीर्यवान और निर्वीर्य १४१, जीव एवं चौबीस दण्डकों में सवीग्रत्व-अवीर्यत्व की प्ररूपणा १४१, अनन्तवीर्य सिद्ध : अवीर्य कैसे ? १४३, शैलेशी शब्द की व्याख्याएँ १४३ । नवम उद्देशक - गुरुक जीवों के गुरुत्व लघुत्वादि की प्ररूपणा १४४, जीवों का गुरुत्व- लघुत्व१४५, चार प्रशस्त और चार अप्रशस्त क्यों १४५, पदार्थों के गुरुत्व- लघुत्व आदि की प्ररूपणा १४५, पदार्थों की गुरुता- लघुता आदि का चतुर्भग की अपेक्षा से विचार १४७, गुरु-लघु आदि की व्याख्या १४८, निकर्ष १४८, अवकाशान्तर १४८, श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त तथा अन्तकर १४८, लाघव आदि पदों के अर्थ १४९, आयुष्यबंध के संबंध में अन्यमतीय एवं भगवदीय प्ररूपणा १४९, आयुष्य करने का अर्थ १५०, दो आयुष्य बंध क्यों नहीं ? १५०, पाश्र्वापत्यीय कालास्यवेषि पुत्र का स्थविरों द्वारा समाधान और हृदयपरिवर्तन १५०, कट्ठसेज्जा के तीन अर्थ १५४, स्थविरों के उत्तर का विश्लेषण १५४, सामायिक आदि का अभिप्राय १५४, सामायिक आदि का प्रयोजन १५४, गर्हा संयम कैसे ? १५४, चारों में प्रत्याख्यान क्रिया : समान रूप से १५४, आधाकर्म एवं प्रासुकएषणीयादि आहारसेवन का फल १५५, प्रासुक आदि शब्दों के अर्थ १५७, बंधइ आदि पदों के भावार्थ १५७, स्थिर - अस्थिरादि निरूपण १५७, 'अथिरे पलोट्टेइ' आदि के दो अर्थ १५७ । दशम उद्देशक-च -चलना चलमान चलित आदि से संबंधित अन्यतीर्थकमत निराकरणपूर्वक स्वसिद्धान्त निरूपण १५९, अन्यतीर्थिकों के मिथ्या मतों का निराकरण १६२, ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी क्रिया संबंधी चर्चा १६३, ऐर्यापथिकी १६३, सांपरायिकी १६३, एक जीव द्वारा एक समय में ये दो क्रियाएँ संभव नहीं १६४, नरकादि गतियों में जीवों का उत्पाद - विरह काल १६४, नरकादि गतियों तथा चौबीस दण्डकों में उत्पाद - विरह काल १६४, नरकादि में उत्पादविरह काल १६४ ॥ [२९]
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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