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________________ तृतीय शतक : उद्देशक - १] (संथारा) अंगीकार किया। [ २८७ विवेचन बालतपस्वी तामली द्वारा पादपोपगमन-अनशन - ग्रहण— प्रस्तुत सूत्रद्वय में तामली तापस के बालतपस्वी जीवन के तीन वृत्तान्त प्रतिपादित किये गए हैं—– (१) उक्त घोर बालतप के कारण शरीर शुष्क, रूक्ष एवं अत्यन्त कृश हो गया। (२) एक रात्रि के पिछले पहर में क्रमश: विधिवत् संलेखना - संथारा करने का संकल्प किया। (३) संकल्पानुसार तामली तापस अपने परिचितों से पूछकर उनकी अनुमति लेकर ताम्रलिप्ती के ईशानकोण में संल्लेखनापूर्वक पादपोपगमन अनशन की आराधना में संलग्न हुआ। संलेखना तपचतुर्विध आहार के सर्वथा प्रत्याख्यान ( यावज्जीवन अनशन) करने से पूर्व साधक काय और कषाय को कृश करने वाला संल्लेखना तप स्वीकार करता है 1 पादपोपगमन-अनशन इस अनशन का धारक साधक गिरे हुए पादप (वृक्ष) की तरह निश्चेष्ट होकर आत्मध्यान में मग्न रहता है । बलिचंचावासी देवगण द्वारा इन्द्र बनने की विनति : तामली तापस द्वारा अस्वीकार ४१. तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहाणी अणिंदा अपुरोहिया यावि था । तते बलचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सि ओहिणा आभोयंति, २ अन्नमन्नं सद्दावेंति, २ एवं वयासी — "एवं खलु देवाप्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवाणुप्पिया ! इंदाधीणा इंदाधिट्ठिया इंदाहीणकज्जा । अयं च णं देवाणुप्पिया ! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाझूसणाझूसिए भत्त- पाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवन्ने । तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तामलिं बालतवरिंस बलिचंचाए रायहाणीए ठितिपकप्पं पकरावेत्तए" त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयम पडिसुर्णेति, २ बलिचंचाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, २ जेणेव रुयगिंदे उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छंति, २ वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णंति जाव उत्तरवेडव्विवाइं रूवाइं विकुव्वंति, २ ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए छेयाए सीहाए सिग्घाए दिव्वाए उद्धुयाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीव - समुद्दाणं मज्झमज्झेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती नगरी जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, २ त्ता तामलिस्स बालतवस्सिस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसिं ठिच्चा दिव्वं देविड्डुिं दिव्वं देवज्जुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेंति, २ तामलिं बालतवस्सिं तिक्खुत्तो आदाहिणं पदाहिणं करेंति वंदंति नमंसंति, २ एवं वदासी "एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे बलिचंचारायहाणीवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाप्पियं वंदामो नम॑सामो जाव पज्जुवासामो । अम्हं णं देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी १. भगवतीसूत्र प्रमेयचन्द्रिका टीका भा. ३ ( पू. घासीलालजी म.), पृ. २१५
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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