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तृतीय शतक : उद्देशक - १]
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बहुत-सी बातों के साथ ईशानेन्द्र के प्रकरण में कही गई बहुत-सी बातों की समानता होने से ईशानेन्द्रप्रकरण को शक्रेन्द्र- प्रकरण के समान बताया गया है, तथापि कुछ बातों में विशेषता है। वह इस प्रकार — ईशानेन्द्र के २८ लाख विमान, ८० हजार सामानिक देव और ३ लाख २० हजार आत्मरक्षक देव हैं; तथा ईशानेन्द्र की वैक्रियशक्ति सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक स्थल को भरने की है, जो शक्रेन्द्र की वैक्रियशक्ति से अधिक है ।
सनत्कुमार से लेकर अच्युत तक के इन्द्रादि की वैक्रियशक्ति सनत्कुमार देवेन्द्रादि की वैक्रियशक्ति सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों तथा तिरछे असंख्येय द्वीप- समुद्रों जितने स्थल को भरने की है, माहेन्द्र की सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की, ब्रह्मलोक की सम्पूर्ण आठ जम्बूद्वीपों को भरने की, लान्तक की सम्पूर्ण आठ जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की, महाशुक्र की १६ पूरे जम्बूद्वीपों को भरने की, सहस्रार की १६ जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की, प्राणत की ३२ पूरे जम्बूद्वीपों के भरने की और अच्युत की ३२ पूरे जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की है । २
सनत्कुमार देवलोक में देवी कहाँ से ? – यद्यपि सनत्कुमार देवलोक में देवी उत्पन्न नहीं होती, तथापि सौधर्म देवलोक में जो अपरिगृहीता देवियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनकी स्थिति समयाधिक पल्योपम से लेकर दस पल्योपम तक की होती है। वे अपरिगृहीता देवियाँ सनत्कुमारदेवों की भोग्या होती हैं, इसी कारण सनत्कुमार- प्रकरण के मूलपाठ में 'अग्गमहिसीणं' कहकर अग्रमहिषियों का उल्लेख किया गया है । ३
देवलोकों के विमानों की संख्या सौधर्म में ३२ लाख, ईशान में २८ लाख, सनत्कुमार में १२ लाख, माहेन्द्र में ८ लाख, ब्रह्मलोक में ४ लाख, लान्तक में ५० हजार, महाशुक्र में ४० हजार, सहस्रार में ६ हजार, आनत और प्राणत में ४०० तथा आरण और अच्युत में ३०० विमान हैं।
सामानिक देवों की संख्या — पहले देवलोक में ८४ हजार, दूसरे में ८० हजार, तीसरे में ७२ हजार, चौथे में ७० हजार, पांचवें में ६० हजार, छठे में ५० हजार, सातवें में ४० हजार, आठवें में ३० हजार, नौवें और दसवें में २० हजार तथा ग्यारहवें और बारहवें देवलोक में १० हजार सामानिक देव हैं । ४
१. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १६० (ख) भगवती टीकानुवादसहित, खं. २, पृ. २२
२. व्याख्याप्रज्ञप्ति (वियाहपन्नत्तीसुत्तं ) ( मूलपाठ टिप्पण) भा. १, पृ. १२७-१२८
३. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १५०
४. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १६०
(ख) प्रज्ञापनासूत्र (क. आ. पृ. १२८) में निम्नोक्त गाथाओं से मिलती जुलती गाथाएँ– बत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा ।
आरणे बंंभलोया विमाणसंख भवे एसा ॥१ ॥ पण्णासं चत्त छच्चेव सहस्सा लंतक - सुक्क - सहस्सारे । सय चउरो आणय- पाणएसु, तिण्णि आरण्णऽच्चुयओ ॥२॥ चउरासीई असीई बावत्तरी सत्तरी य सट्ठी य पण्णा चत्तालीसा तीसा वीसा दससहस्सा ॥३॥
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