SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २७. महासुक्के सोलस केवलकप्पे०। [२७] महाशुक्र (नामक सप्तम देवलोक के इन्द्रादि) के विषय में इसी प्रकार समझना चाहिए, किन्तु विशेषता इतनी है कि वे सम्पूर्ण सोलह जम्बूद्वीपों (जितने स्थल) को भरने की वैक्रियशक्ति रखते २८. सहस्सारे सातिरेगे सोलस०। [२८] सहस्रार (नामक अष्टम देवलोक के इन्द्रादि) के विषय में भी यही बात है। किन्तु विशेषता इतनी है कि वे सम्पूर्ण सोलह जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक स्थल को भरने का वैक्रिय-सामर्थ्य रखते हैं। २९. एवं पाणए वि, नवरं बत्तीसं केवल०। [२९] इसी प्रकार प्राणत (देवलोक के इन्द्र तथा उसके देववर्ग की ऋद्धि आदि) के विषय में भी जानना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि वे सम्पूर्ण बत्तीस जम्बूद्वीपों (जितने क्षेत्र को भरने) की वैक्रियशक्ति वाले हैं। ३०. एवं अच्चुए वि, नवरं सातिरेगे बत्तीसं केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे। अन्नं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसति जाव विहरति। [३०] इसी तरह अच्युत (नामक बारहवें देवलोक के इन्द्र तथा उसके देववर्ग की ऋद्धि आदि) के विषय में भी जानना चाहिए। किन्तु विशेषता इतनी है कि वे सम्पूर्ण बत्तीस जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक क्षेत्र को भरने का वैक्रिय-सामर्थ्य रखते हैं। शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है;' यों कहकर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार कर यावत् विचरण करने लगे। विवेचन-ईशानेन्द्र, कुरुदत्तपुत्र देव तथा सनत्कुमारेन्द्र से लेकर अच्युतेन्द्र तक के इन्द्रों तथा उनके सामानिक आदि देववर्ग की ऋद्धि-विकुर्वणाशक्ति आदि का निरूपण—प्रस्तुत १२ सूत्रों (१९ से ३० सूत्र तक) में ईशानेन्द्र, ईशानदेवलोकोत्पन्न कुरुदत्तपुत्रदेव, ईशानेन्द्र के सामानिकादि तथा सनत्कुमार से अच्युत देवलोक तक के इन्द्रों तथा उनके समानिकादि देवों की ऋद्धि आदि एवं विकुर्वणाशक्ति के विषय में प्ररूपण किया गया है। ___ कुरुदत्तपुत्र अनगार के ईशान-सामानिक होने की प्रक्रिया-ईशानेन्द्र की ऋद्धि, विकुर्वणाशक्ति आदि के विषय में प्रश्नोत्तर के पश्चात् ईशानेन्द्र के सामानिकदेव के रूप में उत्पन्न हुए प्रश्नकर्ता के पूर्व परिचित कुरुदत्तपुत्र अनगार की ऋद्धि, विकुर्वणाशक्ति आदि के विषय में प्रश्न करना प्रसंग-प्राप्त ही है। प्रश्नकर्ता ने अपने परिचित कुरुदत्तपुत्र अनगार की कठोर तपश्चर्या से सामानिक देव पद तथा उससे सम्बन्धित ऋद्धि, विकुर्वणाशक्ति आदि का वर्णन करके सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक की गई तपश्चर्या का महत्त्व भी प्रकारान्तर से प्रतिपादित कर दिया है। ईशानेन्द्र एवं शक्रेन्द्र में समानता और विशेषता यद्यपि शक्रेन्द्र के प्रकरण में कही हुई
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy