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________________ २७८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'पगिज्झिय' आदि कठिन शब्दों के अर्थ—पगिज्झिय-ग्रहण करके-करके। आरद्धा उवरिल्ला से लेकर ऊपर के। मोकानगरी से विहार और ईशानेन्द्र द्वारा भगवद्वन्दन ३१. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई मोयाओ नगरीओ नंदणाओ चेतियाओ पडिनिक्खमइ, २ बहिया जणवयविहारं विहरइ। [३१] इसके पश्चात् किसी एक दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी 'मोका' नगरी के 'नन्दन' नामक उद्यान से बाहर निकलकर (अन्य) जनपद में विचरण करने लगे। ३२. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था। वण्णओ। जाव परिसा पज्जुवासइ। _ [३२] उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र के नगरी वर्णन के समान जानना चाहिए। (भगवान् वहाँ पधारे) यावत् परिषद् भगवान् की पर्युपासना करने लगी। ३३. तेणं कालेणं तेण समएणं ईसाणे देविंदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे उत्तरड्ढलोगा-हिवई अट्ठावीसविमाणावाससयसहस्साहिवई अरयंबरवत्थधरे आलइयमालमउडे नवहेमचारुचित्त-चंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे ईसाणे कप्पे ईसाणवडिंसए विमाणे जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव (राज. पत्र ४४-५४) दिव्वं देविड्ढिं जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। [३३] उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि (हाथमें शूल-त्रिशूल धारक) वृषभवाहन (बैल पर सवारी करने वाला) लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी, नवीन स्वर्णनिर्मित सुन्दर, विचित्र एवं चंचल कुण्डलों से कपोल को जगमगाता हुआ यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करता हुआ ईशानेन्द्र, ईशानकल्प में ईशानावतंसक विमान में (रायपसेणीयराजप्रश्नीय उपांग में कहे अनुसार) यावत् दिव्य देवऋद्धि का अनुभव करता हुआ (भगवान् के दर्शनवन्दन करने आया) और यावत् जिस दिशा से आया था उसी दिशा में वापस चला गया। विवेचन-मोका नगरी से विहार और ईशानेन्द्र द्वारा भगवद्वन्दन–प्रस्तुत तीन सूत्रों (३१ से ३३ तक) में शास्त्रकार ने तीन बातों का संकेत किया है १-मोकानगरी से भगवान् का बाह्य जनपद में विहार। २-राजगृह ने भगवान् का पदार्पण और परिषद् द्वारा पर्युपासना। ३-ईशानेन्द्र का भगवान् के दर्शन-वंदन के लिए आगमन। १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १६० २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ टिप्पणीयुक्त) पृ. १२९
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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