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________________ में समाहारादि विचार ५६, जीवों का संसार-संस्थान-काल एवं अल्पबहुत्व ५७, चार प्रकार का संसार-संस्थानकाल ५७, चारों गतियों के जीवों का संसार-संस्थान-काल : भेद-प्रभेद एवं अल्पबहुत्व ५८, संसार संस्थान-काल सम्बन्धी प्रश्नों का उद्भव क्यों ५८, संसार-संस्थान-काल न माना जाए तो? ५८ त्रिविध संसार संस्थान-काल ५९, अशून्यकाल ५९, मिश्रकाल ५९,शून्य-काल ५९, तीनों कालों का अल्पबहुत्व ५९,तिर्यंचों की अपेक्षा अशून्यकाल सबसे कम ५९, अन्तक्रिया सम्बन्धी चर्चा ६०, अन्तक्रिया का अर्थ ६०, असंयत भव्य द्रव्यदेव आदि सम्बन्धी विचार ६०, असंयत भव्य द्रव्यदेव आदि के देवलोक उत्पाद के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर ६१, (१) असंयत भव्य द्रव्य देव ६१, (२) अविराधित संयमी ६१, (३) विराधित संयमी ६१, (४) अविराधित संयमासंयमी ६१, (५) विराधित संयमासंयमी ६१, (६) असंज्ञी जीव ६१, (७) तापस ६२, (८) कांदर्पिक ६२, (९) चरक परिव्राजक ६२, (१०) किल्विषिक ६२, (११) तिर्यंच ६२, (१२) आजीविक ६२, (१३) आभियोगिक ६२, (१४) दर्शनभ्रष्ट संलिगी ६२, असंज्ञी-आयुष्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर ६२, असंज्ञी-आयुष्य : प्रकार, उपार्जन एवं अल्पबहुत्व ६३, असंज्ञी द्वारा आयुष्य का उपार्जन या वेदन? ६३ । तृतीय उद्देशक-कांक्षा-प्रदोष चौबीस दण्डकों में कांक्षामोहनीयकर्म सम्बन्धी षड्वार विचार ६५, कांक्षामोहनीयवेदन कारण विचार ६६, चतुर्विशति दण्डकों में कांक्षा-मोहनीय का कृत, चित आदि छह द्वारों से त्रैकालिक विचार ६७, कांक्षामोहनीय ६७, कांक्षामोहनीय का ग्रहण : कैसे, किस रूप में ६७, कर्मनिष्पादन की क्रिया त्रिकाल-सम्बन्धित ६८, चित्त आदि 'का स्वरूप : प्रस्तुत सन्दर्भ में ६८, उदीरणा आदि में सिर्फ तीन प्रकार का काल ६८, उदयप्राप्त कांक्षामोहनीय का वेदन ६८, शंका आदि पदों की व्याख्या ६८, कांक्षामोहनीय को हटाने का प्रबल कारण ६९, 'जिन' शब्द का अर्थ ६९, अस्तित्व-नास्तित्व-परिणमन चर्चा ६९, अस्तित्व-नास्तित्व की परिणति और गमनीयता आदि का विचार ७०, अस्तित्व की अस्तित्व में और नास्तित्व की नास्तित्व में परिणतिः व्याख्या ७०, वस्तु में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्मों की विद्यमानता ७१, नास्तित्व की नास्तित्व-रूप में परिणतिः व्याख्या ७१, पदार्थों के परिणमन के प्रकार ७२, गमनीयरूप प्रश्न का आशय ७२, 'एत्थं' और 'इहं' प्रश्न सम्बन्धी सूत्र का तात्पर्य ७२, कांक्षामोहनीयकर्मबन्ध के कारणों की परम्परा ७३, बन्ध के कारण पूछने का आशय ७४, कर्मबन्ध के कारण ७४, शरीर का कर्ता कौन? ७४, उत्थान आदि का स्वरूप ७४, शरीर से वीर्य की उत्पत्ति: एक समाधान ७४, कांक्षामोहनीय की उदीरणा, गर्दा आदि से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर ७४, कांक्षामोहनीय कर्म की उदीरणा, गर्दा, संवर, उपशम वेदन, निर्जरा आदि से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर ७६, उदीरणा : कुछ शंका समाधान ७७, गर्दा आदि का स्वरूप ७७, वेदना और गर्दा ७७, कर्म सम्बन्धी चतुर्भंगी ७७, चौबीस दण्डकों तथा श्रमणों के कांक्षामोहनीय वेदन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर ७८, पृथ्वीकाय कर्मवेदन कैसे करते हैं? ७९, तर्क आदि का स्वरूप ७९, शेष दण्डकों में कांक्षामोहनीय कर्मवेदन ८०, श्रमणनिर्ग्रन्थ को भी कांक्षामोहनीय कर्मवेदन ८०, ज्ञानान्तर ८०, दर्शनान्तर ८०, चारित्रान्तर ८०, लिंगान्तर ८१, प्रवचनान्तर ८१, प्रावचनिकान्तर ८१, कल्पान्तर ८१, मार्गान्तर ८१, मतान्तर ८१, भंगान्तर ८१, नयान्तर ८१, नियमान्तर ८१, प्रमाणान्तर ८१। चतुर्थ उद्देशक-(कर्म) प्रकृति कर्मप्रकृतियों से सम्बन्धित निर्देश ८२, कर्म और आत्मा का सम्बन्ध ८२, उदीण-उपशान्तमोह जीव के सम्बन्ध में उपस्थान उपक्रमणादि-प्ररूपण ८३, मोहनीय का प्रासंगिक अर्थ ८४, वीरियत्ताए' का आशय ८४, [२७]
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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