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में स्पष्टीकरण २७, पृथ्वीकाय आदि स्थावर चर्चा २७, पंच स्थावर जीवों की स्थिति आदि के विषय में प्रश्नोत्तर २९, पृथ्वीकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति २९, विमात्रा-आहार, विमात्रा श्वासोच्छ्वास २९, द्वीन्द्रियादि त्रस-चर्चा २९, विकलेन्द्रिय जीवों की स्थिति ३१, असंख्यात समय वाला अन्तर्मुहूर्त ३२, रोमाहार ३२, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों के सम्बन्ध में आलापक ३२, मनुष्य एवं देवादि विषयक चर्चा ३२, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य, वाणव्यंतर ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों की स्थिति आदि का वर्णन ३३, पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति ३३, तिर्यंचों और मनुष्यों के आहार की अवधि किस अपेक्षा से ३३, वैमानिक देवों के श्वासोच्छ्वास एवं आहार के परिमाण का सिद्धान्त ३३, मुहूर्त पृथक्त्वः उत्कृष्ट और जघन्य ३४, जीवों की आरम्भ विषयक चर्चा ३४, चौबीस दण्डकों में आरम्भ प्ररूपणा ३५, सलेश्य जीवों में आरभ प्ररूपणा ३६, विविध पहलुओं से आरम्भी-अनारम्भ विचार ३६, आरम्भ का अर्थ ३६, अल्पारम्भी परारम्भी, तदुभयारम्भी (उभयारम्भी) अनारंभी, शुभ, योग, लेश्या और संयत-असंयत शब्दों का अभिप्राय ३६, भव की अपेक्षा से ज्ञानादिक की प्ररूपणा ३७, भव की अपेक्षा से ज्ञानादि सम्बन्धी प्रश्नोत्तर ३७, चारित्र, तप और संयम परभव के साथ नहीं जाते ३६, असंवुड-संवुड विषयक सिद्धता की चर्चा ३७, असंवृत और संवृत अनगार के सिद्ध होने आदि से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर ३९, असंवृत और संवृत का अभिप्राय ३९, दोनों में अन्तर ३९, “सिज्झइ' आदि पाँच पदों का अर्थ और क्रम ३९, असंवृत अनगार : चारों प्रकार के बंध का परिवर्धक ३९, 'अणाइयं' के वृत्तिकार के अनुसार चार रूपान्तर और उनका अभिप्राय ३९, अणवदग्गं' के तीन रूपान्तर और अर्थ ४०, 'दीहमद्धं' के दो अर्थ ४०, असंयत जीव की देवगति विषयक चर्चा ४०, वाणव्यंतर देवलोक-स्वरूप ४१, असंयत जीवों की गति एवं वाणव्यंतर देवलोक ४१, कठिन शब्दों की व्याख्या ४१, दोनों के देवलोक में अन्तर ४२, वाणव्यंतर शब्द का अर्थ ४२, गौतम स्वामी द्वारा प्रदर्शित वन्दन-बहुमान ४२ । द्वितीय उद्देशक-दुःख
उपक्रम ४३, जीव के स्वकृत दुःखवेदन सम्बन्धी चर्चा ४३, आयुवेदन सम्बंधी चर्चा ४४, स्वकृत दुःख एवं आयु के वेदन संबंधी प्रश्नोत्तर ४४, स्वकृतक कर्मफल भोग सिद्धान्त ४४, चौबीस दण्डक में समानत्व चर्चा (नैरयिक विषय) ४५, नैरयिकों के आहार, शरीर, उच्छ्वास-निःश्वास, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया, आयुष्य के समानत्व-असमान्त संबंधी प्रश्नोत्तर ४५-४८, असुरकुमारादि समानत्व चर्चा ४८, नागकुमारों से स्तनित कुमार तक समानत्व संबंधी आलापक ४८, पृथ्वीकाय आरि समानत्व चर्चा ४८, विकलेन्द्रिय समानत्व संबंधी आलापक ४९, पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की क्रिया में भिन्नता ४९, मनुष्य देव विषयक समानत्व चर्चा ५०, चौबीस दण्डक में लेश्या की अपेक्षा समाहारादि विचार ५१, नारक आदि चौबीस दण्डकों के संबंध में समाहारादि दशद्वार सम्बन्धी प्रनोत्तर ५२, छोटा-बड़ा शरीर आपेक्षिक ५२, प्रथम प्रश्न आहार का, किन्तु उत्तर शरीर का ५२, अल्पशरीर वाले से महाशरीर वाले का आहार अधिक : यह कथन प्रायिक ५३, बड़े शरीर वाले की वेदना और श्वासोच्छ्वास-मात्रा अधिक ५३, नारक : अल्पकर्मी एवं महाकर्मी ५३, संज्ञिभूत-असंज्ञिभूत के चार अर्थ ५३, क्रिया ५४, आयु और उत्पत्ति की दृष्टि से नारकों के चार भंग ५४, असुरकुमारों का आहार मानसिक ५४, असुरकुमारों का आहार और श्वासोच्छ्वास ५४, असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या का कथन : नारकों से विपरीत ५४, पृथ्वीकायिक जीवों का महाशरीर और अल्प शरीर ५५, पृथ्वीकायिक जीवों की समान वेदना : क्यों और कैसे? ५५, पृथ्वीकायिक जीवों में पाँचों क्रियाएँ कैसे? ५५, मनुष्यों के आहार की विशेषता ५६, कुछ पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या ५६, सयोग केवली क्रियारहित कैसे ५६, अप्रमत्त संयत में माया प्रत्यया क्रिया ५६, लेश्या की अपेक्षा चौबीस दण्डकों
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