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द्वितीय शतक : उद्देशक - १०]
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रज्जुप्रमाण समग्र लोकव्यापी है और अधोलोक का परिमाण सात रज्जु से कुछ अधिक है । इसीलिए अधोलोक धर्मास्तिकाय के आधे से कुछ अधिक भाग का स्पर्श करता है । तिर्यग्लोक का परिमाण १८०० योजन है और धर्मास्तिकाय का परिमाण असंख्येय योजन का है। इसलिए तिर्यग्लोक धर्मास्तिकाय असंख्य भाग का स्पर्श करता है। ऊर्ध्वलोक देशोन सात रज्जुपरिमाण है और धर्मास्तिकाय चौदह रज्जु - परिमाण है । इसलिए ऊर्ध्वलोक धर्मास्तिकाय के देशोन अर्धभाग का स्पर्श करता है ।
वृत्तिकार के अनुसार ५२ सूत्र—यहाँ रत्नप्रभा आदि प्रत्येक पृथ्वी के विषय में पाँच-पाँच सूत्र होते हैं (यथा— रत्नप्रभा, उसका घनोदधि, घनवात, तनुवात और अवकाशान्तर ) । इस दृष्टि से सातों पृथ्वियों के कुल ३५ सूत्र हुए। बारह देवलोक के विषय में बारह सूत्र, ग्रैवेयकत्रिक के विषय में तीन सूत्र, अनुत्तरविमान और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के विषय में दो सूत्र, इस प्रकार सब मिलाकर ३५+१२+३+२=५२ सूत्र होते हैं। इन सभी सूत्रों में- 'क्या धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श ·करता है?.....यावत् सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ?' इस प्रकार कहना चाहिए। इस प्रश्न का उत्तर यह है—' सभी अवकाशान्तर धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को और शेष सभी असंख्येय भाग को स्पर्श करते हैं । '
अधर्मास्तिकाय और लोकाकाशास्तिकाय के विषय में भी इसी तरह सूत्र (आलापक) कहने
चाहिए ।
॥ द्वितीय शतक : दशम उद्देशक समाप्त ॥
भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रक १५२
॥ द्वितीय शतक सम्पूर्ण ॥