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________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१] [१९३ गए, मांसरहित हो गए, वह (उनका शरीर) केवल हड्डी और चमड़ी से ढका हुआ रह गया। चलते समय हड्डियाँ खड़-खड़ करने लगीं, वे कृश-दुर्बल हो गए, उनकी नाड़ियाँ सामने दिखाई देने लगीं, अब वे केवल जीव (आत्मा) के बल से चलते थे, जीव के बल से खड़े रहते थे, तथा वे इतने दुर्बल हो गए थे कि भाषा बोलने के बाद, भाषा बोलते-बोलते भी और भाषा बोलूंगा, इस विचार से भी ग्लानि (थकावट) को प्राप्त होते थे, (उन्हें बोलने में भी कष्ट होता था)। जैसे कोई सूखी लकड़ियों से भरी हुई गाड़ी हो, पत्तों से भरी हुई गाड़ी हो, पत्ते, तिल और अन्य सूखे सामान से भरी हुई गाड़ी हो, एरण्ड की लकड़ियों से भरी हुई गाड़ी हो, या कोयले से भरी हुई गाड़ी हो, सभी गाड़ियाँ (गाड़ियों में भरी सामग्री) धूप में अच्छी तरह सुखाई हुई हों और फिर चलाई जाएँ तो खड़-खड़ आवाज करती हुई चलती हैं और आवाज करती हुई खड़ी रहती हैं, इसी प्रकार जब स्कन्दक अनगार चलते थे, खड़े रहते थे, तब खड़-खड़ आवाज होती थी। यद्यपि वे शरीर से दुर्बल हो गए थे, तथापि वे तप से पुष्ट थे। उनका मांस और रक्त क्षीण (अत्यन्त कम) हो गये थे, किन्तु राख के ढेर में दबी हुई अग्नि की तरह तप और तेज सेत को शोभा से अतीव-अतीव सुशोभित हो रहे थे। विवेचन स्कन्दक द्वारा शास्त्राध्ययन, भिक्षुप्रतिमाऽऽराधन और गुणरत्नादि तपश्चरण प्रस्तुत आठ सूत्रों (३९ से ४६ तक) में निर्ग्रन्थदीक्षा के बाद स्कन्दक अनगार द्वारा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना किस-किस प्रकार से की गई थी ?, उसका सांगोपांग विवरण प्रस्तुत किया गया है। इनसे पूर्व के सूत्रों में स्कन्दक द्वारा आचरित समिति, गुप्ति, दशविध श्रमणधर्म, संयम, ब्रह्मचर्य, महाव्रत, आदि चारित्रधर्म के पालन का विवरण प्रस्तुत किया जा चुका है। इसलिए इन सूत्रों में मुख्यतया ज्ञान, दर्शन और तप की आराधना का विवरण दिया गया है। उसका क्रम इस प्रकार है १. स्कन्दक ने स्थविरों से सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। २. तत्पश्चात् भगवान की आज्ञा से क्रमशः मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पंचमासिक, षण्मासिक, सप्तमासिक, फिर प्रथम सप्तरात्रिकी, द्वितीय सप्तरात्रिकी, तृतीय सप्तरात्रिकी, एक अहोरात्रिकी, एवं एकरात्रिकी, यों द्वादश भिक्षुप्रतिमा को अंगीकार करके उनकी सम्यक् आराधना की। __ ३. तत्पश्चात् गुणरत्नसंवत्सर नामक तप को स्वीकार करके यथाविधि सम्यक् आराधना की तथा अन्य विभिन्न तपस्याओं से आत्मा भावित की। ४. इस प्रकार की आभ्यन्तर तपश्चरण पूर्वक बाह्य तपस्या से स्कन्द्रक अनगार का शरीर अत्यन्त कृश हो गया था, किन्तु आत्मा अत्यन्त तेजस्वी, उज्ज्वल, शुद्ध एवं अत्यन्त लघुकर्मा बन गयी। स्कन्दक का चरित किस वाचना द्वारा अंकित किया गया?भगवान् महावीर के शासन में ९ वाचनाएँ थीं। पूर्वकाल में उन सभी वाचनाओं में अन्य चरितों के द्वारा वे अर्थ प्रकट किये जाते थे, जो प्रस्तुत वाचना में स्कन्दक के चरित द्वारा प्रकट किये गए हैं। जब स्कन्दक का चरित घटित हो गया, तो सुधर्मास्वामी ने वही अर्थ स्कन्दकचरित द्वारा प्रकट किया हो, ऐसा सम्भव है। भिक्षप्रतिमा की आराधना—निर्ग्रन्थ मुनियों के अभिग्रह (प्रतिज्ञा) विशेष को भिक्षुप्रतिमा कहते हैं। ये प्रतिमाएँ बारह होती हैं, जिनकी अवधि का उल्लेख मूल पाठ में किया है। भिक्षुप्रतिमाधारक मुनि अपने शरीर को संस्कारित करने का तथा शरीर के प्रति ममत्व का त्याग कर देता है। वह अदीनतापूर्वक समभाव से देव,
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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