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________________ १७४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र परिवसइ, रिउव्वेद-जजुव्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए वारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु पारिव्वायएसु य नयेसु सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था। [१२] उस कृतंगला नगरी के निकट श्रावस्ती नगरी थी। उसका वर्णन (औपपातिक सूत्र से) जान लेना चाहिए। उस श्रावस्ती नगरी में गर्दभाल नामक परिव्राजक का शिष्य कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक नाम का परिव्राजक (तापस) रहता था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेदं और अथर्ववेद, इन चार वेदों, पांचवें इतिहास (पुराण), छठे निघण्टु नामक कोश का तथा सांगोपांग (अंगों-उपांगों सहित) रहस्य-सहित वेदों का सारक (स्मारक-स्मरण कराने वाला—भूले हुए पाठ को याद कराने वाला, पाठक), वारक (अशुद्ध पाठ बोलने से रोकने वाला), धारक (पढ़े हुए वेदादि को नहीं भूलने वाला धारण करने वाला), पारक (वेदादि शास्त्रों का पारगामी), वेद के छह अंगों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्दशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र) का वेत्ता था। वह षष्ठितंत्र (सांख्यशास्त्र) में विशारद था, वह गणितशास्त्र, शिक्षाकल्प (आचार) शास्त्र, व्याकरणशास्त्र, छन्दशास्त्र, निरुक्त (व्युत्पत्ति) शास्त्र और ज्योतिषशास्त्र, इन सब शास्त्रों में तथा दूसरे बहुत-से ब्राह्मण और परिव्राजक-सम्बन्धी नीति और दर्शनशास्त्रों में भी अत्यन्त निष्णात था। १३. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए नामं नियंठे वेसालियसावए परिवसइ। तए णं से पिंगलए णामं णियंठे वेसालियसावए अण्णदा कयाई जेणेव खंदए कच्चायणसगोत्ते तेणेव उवागच्छइ, २. खंदगं कच्चायणसगोत्तं इणमक्खेवं पुच्छे—मागहा! किं सअंते लोके, अणंते लोके १, सअंते जीवे अणंते जीवे २, सअंता सिद्धी अणंता सिद्धी ३, सअंते सिद्धे अणंते सिद्धे ४, केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वड्डति वा हायति वा ५? एतावंताव आयक्खाहि। वुच्चमाणे एवं। [१३] उसी श्रावस्ती नगरी में वैशालिक श्रावक (भगवान् महावीर के वचनों को सुनने में रसिक) पिंगल नामक निर्ग्रन्थ (साधु) था एकदा वह वैशालिक श्रावक पिंगल नामक निर्ग्रन्थ किसी दिन जहाँ कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक रहता था, वहाँ उसके पास आया और उसने आक्षेपपूर्वक कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक ने पूछा-'मागध! (मगधदेश में जन्मे हुए),'१—लोक सान्त (अन्त वाला) है या अनन्त (अन्तरहित) है ? २जीव सान्त है या अनन्त है ?, ३-सिद्धि सान्त है या अनन्त है ?, ४-सिद्ध सान्त है या अनन्त है ?,५-किस मरण से मरता हुआ जीव बढ़ता (संसार बढ़ाता) है और किस मरण से मरता हुआ जीव घटता (संसार घटाता) है ? इतने प्रश्नों का उत्तर दो (कहो)। १४. तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते पिंगलएणं णियंठेणं वेसालीसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए कंखिए वितिगिंछिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने णो संचाएइ पिंगलयस्स नियंठस्स वेसलियसावयस्स किंचि वि पमोक्खमक्खाइडं, तुसिणीए संचिट्ठइ। [१४] इस प्रकार उस कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक तापस से वैशालिक श्रावक पिंगल निर्ग्रन्थ ने पूर्वोक्त प्रश्न आक्षेपपूर्वक पूछे, तब स्कन्दक तापस (इन प्रश्नों के ये ही उत्तर होंगे या दूसरे ? इस प्रकार) शंकाग्रस्त
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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