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________________ १६४] । [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एक जीव द्वारा एक समय में ये दो क्रियाएँ सम्भव नहीं-जीव जब कषाययुक्त होता है, तो कषायरहित नहीं होता और जब कषायरहित होता है, तो सकषाय नहीं हो सकता। दसवें गुणस्थान तक सकषायदशा है। आगे के गुणस्थानों में अकषाय-अवस्था है। ऐर्यापथिकी अकषाय-अवस्था की क्रिया है, साम्परायिकी कषाय-अवस्था की। अतएव एक ही जीव एक ही समय में इन दोनों क्रियाओं को नहीं कर सकता। नरकादि गतियों में जीवों का उत्पाद-विरहकाल ३. निरयगती णं भंते! केवतियं कालं विरहिता उववातेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। एवं वक्कंतीपदं भाणितव्वं निरवसेसं। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरति। ॥दसमो उद्देसओ समत्तो॥ ॥पढमं सतं समत्तं॥ [३ प्र.] भगवन् ! नरकगति, कितने समय तक उपपात से विरहित रहती है ? [३ उ.] गौतम! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक नरकगति उपपात से रहित रहती है। इसी प्रकार यहाँ (प्रज्ञापनासूत्र का सारा) 'व्युत्क्रान्तिपद' कहना चाहिए। "हे भगवन्! यह ऐसा ही है, यह ऐसा ही है,' इस प्रकार कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं विवेचन–नरकादि गतियों तथा चौबीस दण्डकों में उत्पाद-विरहकाल—प्रस्तुत सूत्र में प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद का अतिदेश करके नरकादि गतियों में जीवों की उत्पत्ति (उपपात-उत्पाद) के विरहकाल की प्ररूपणा की गई है। __ नरकादि में उत्पादविहरकाल प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार विभिन्न गतियों में जीवों के उत्पाद का विरहकाल संक्षेप में इस प्रकार है-पहली नरक में २४ मुहूर्त का, दूसरी में ७ अहोरात्र का, तीसरी में १५ अहोरात्र का, चौथी में १ मास का, पांचवीं में दो मास का, छठी में चार मास का, सातवीं में छह मास का विरहकाल होता है। इसी प्रकार तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय, मनुष्य एवं देवगति में जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट १२ मुहूर्त का उत्पादविरहकाल है। पंचस्थावरों में कभी विरह नहीं होता, विकलेन्द्रिय में और असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच में अन्तर्मुहूर्त का तथा संज्ञी-तिर्यञ्च एवं संज्ञी मनुष्य में १२ मुहूर्त का विरह होता है। सिद्ध अवस्था में उत्कृष्ट ६ मास का विरह होता है। इसी प्रकार उद्वर्तना के विरहकाल के विषय में भी जानना चाहिए। ॥प्रथम शतक : दशम उद्देशक समाप्त॥ प्रथम शतक सम्पूर्ण १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १०६ २. घतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक १०७-१०८
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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